Thursday, June 25, 2015

8 से 10 जून 2015 को स्वांखा थान (जिला साम्बा) में नेचर-ह्यूमन सेंटरिक पीपुल्स मूवमेंट के तीन दिवसीय सम्मेलन के नाम एक संदेश

दोस्तो और साथियो,

इच्छा थी कि मैं आपके साथ इस कॉन्फ्रेंस में शिरकत करता, लेकिन बीमारी की वजह से ऐसा करने में अभी असमर्थ हूं. लिहाजा इस बारे में फिलहाल क्षमा मांगते हुए इस सम्मेलन की सफलता की कामना करता हूं और आकांक्षा रखता हूं कि यह नेचर-ह्यूमन सेंटरिक पीपुल्स मूवमेंट (एनएचसीपीएम) के विकास में एक मील पत्थर साबित हो.

इस मौके पर एक बात आपके समक्ष रखना जरूरी समझता हूं. उम्मीद है कि आप इस पर गौर फरमाएंगे. हम सब रियल्टी (वास्तविकता / हकीकत) की तलाश में हैं और रियल्टी के बारे में वैज्ञानिक-तार्किक सोच का मानना है कि वह सैद्धांतिक शोध के साथ-साथ व्यावहारिक शोध से निकलती है. लेकिन कॉमरेड आर.पी. सराफ के निधन के बाद लंबे अरसे से एनएचसीपीएम में ऐसे शोध का अभाव खटकता आ रहा है. ऐसे में मेरा प्रस्ताव है कि यह सम्मेलन एक नेचर-ह्यूमन रिसर्च इंस्टीट्यूट स्थापित करने का फैसला करे और एक उपसमिति का गठन कर इस दिशा में कसरत शुरू करे. इस उपसमिति का काम तय समय के भीतर विभिन्न लोगों से चर्चा करके आगे क्रियान्वित करने के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करना हो.

रिसर्च इंस्टीट्यूट स्थापित करने की जरूरत आज शिद्दत से है और ऐसे इंस्टीट्यूट ‍का विचार कोई हवाई बात नहीं है. इसके लिए कुछ तथ्‍य यहां दोहराना चाहूंगा:

सब जानते हैं कि नेचर-ह्यूमन सेंटरिक नजरिए के लगभग सभी सूत्र कॉमरेड सराफ ने मुख्य रूप से 2001 से लेकर 2008 तक लिखी अपनी रचनाओं में प्रतिपादित किए हैं, जो समय-समय पर उनके संपादकत्व में निकलने वाली पत्रिका नेचर-ह्यूमन सेंटरिक व्यूपॉइंट  में प्रकाशित होते रहे हैं. लेकिन 24 जून 2009 को उनके निधन के बाद इस नजरिए के विकास में बाधा आ गई. वे इसके सूत्रों को प्रकृति की खोज में सामने आ रहे नए घटनाक्रमों और संगठन के आयाम में कुशलता से लागू कर पाते, इससे पहले ही चल बसे. आज कॉमरेड सराफ सरीखा प्रकृति-मानव समाज से संबंधित शोधकर्ता हमारे बीच में नहीं है, लिहाजा ऐसे रिसर्च इंस्टीट्यूट को स्थापित करना वक्त का तकाजा है. 

हालांकि मेरा पक्का मानना है कि कॉमरेड सराफ के प्रतिपादित सूत्रों में अभी बदलाव की गुंजाइश नहीं है, लेकिन इसके साथ ही हमें याद रखना है कि दुनिया में कोई चीज परिपूर्ण नहीं होती. कोई विचारधारा किसी व्यक्ति विशेष से जुड़ी होने के बावजूद ‍किन्हीं परिस्थितियों और किसी दौर की देन होती है. और परिस्थितियों के लगातार बदलते जाने से उसमें भी धीरे-धीरे बदलाव आते जाने से उसके विकास की जरूरत रहती है. कॉमरेड सराफ ने अपने शोध और अध्ययन के आधार पर प्रकृति-मानव समाज को लेकर जो नतीजे निकाले हैं, उनमें कोई गुणात्मक अंतर तो नहीं आया है, लेकिन उनमें जो मात्रात्मक बदलाव आ रहे हैं, उनका अध्ययन करने और उन्हें दर्ज करने का काम कोई रिसर्च इंस्टीट्यूट ही बखूबी कर सकता है.

यही नहीं, नेचर-ह्यूमन सेंटरिक नजरिया ऐसा दावा नहीं करता कि उसके पास हर चीज का असली और प्रामाणिक लेखा-जोखा है. इसके बजाए वह खुद को आगे अध्ययन और विकास के लिए महज एक मॉडल मानता है. वैज्ञानिक-तार्किक भाव वाली उसकी सोच में हठधर्मिता की कोई जगह नहीं है और चीजों की परख प्रमाण के आधार पर करने की बात है. और जब नए तथ्य तथा नए प्रमाण सामने आने लगते हैं तो नेचर-ह्यूमन सेंटरिक नजरिया पुनर्विचार करने को भी तत्पर रहता है. ऐसे नए तथ्यों और नए प्रमाणों को जुटाने की जिम्मेदारी मूल रूप से किसी रिसर्च इंस्टीट्यूट को ही दी जा सकती है.

और फिर, शोध आज पुराने जमाने जैसा नहीं रह गया है. तब बहुत कम लोगों को शोध की सुविधाएं उपलब्ध थीं. किताबें या लाइब्रेरी का उपयोग बिरले लोग कर पाते थे. और शोध के बाद उनके प्रकाशन का काम या तो संपन्न व्यक्ति या किसी संगठन से जुड़े व्यक्ति ही कर पाते थे. लेकिन आज इंटरनेट ने शोध का कायाकल्प कर दिया है. आज जिसके पास भी इंटरनेट की सुविधा है और जो शोध की इच्छा रखता है, उसे रिसर्च इंस्टीट्यूट से जोड़ा जा सकता है. इस तरह किसी संगठन के पास शोधकर्ताओं की पूरी फौज खड़ी हो सकती है. ऐसे में रिसर्च इंस्टीट्यूट स्थापित करने ‍का विचार कोई हवाई बात नहीं है.

उपरोक्त तथ्यों की रोशनी में इस कॉन्फ्रेंस में जुटे साथियों से अनुरोध है कि वे नेचर-ह्यूमन रिसर्च इंस्टीट्यूट स्थापित करने का फैसला करके वक्त के तकाजे को पूरा करें. धन्यवाद.
आपका साथी
ओम सराफ

दिनांक 08.06.2015