Wednesday, June 28, 2023

गिल्बर्ट नॉर्मन प्लास: 1950 वाले दशक में ग्लोबल वॉर्मिंग का संकेत

1950 वाले दशक में किसी के ख्वाबोख्याल में भी नहीं माना जाता था कि जलवायु परिवर्तन जीवाश्म ईंधन जलाए जाने की वजह से हो रहा है. जलवायु विज्ञानी यह तो समझ रहे थे कि दुनिया में तापमान बढ़ रहा है. लेकिन इसकी वजह उन्हें सही ढंग से समझ नहीं आ रही थी. इसके लिए वे कई तरह की व्याख्याएं देते थे. कभी कहते कि ऐसा सूर्य में कभी-कभार प्रकट होते कुछ धब्बों की वजह से है. तो कभी यह कि सूर्य के इर्दगिर्द पृथ्वी की अस्थिर चाल के चलते ऐसा हो रहा है. 

लेकिन उस समय भी कुछ वैज्ञानिक थे जिन्हें तापमान बढ़ने के खतरे की वजह का आभास होने लगा था. इनमें कनाडा के भौतिकविज्ञानी गिल्बर्ट नॉर्मन प्लास भी थे, जिन्होंने सन् 1953 में वैज्ञानिकों को कार्बन डाइऑक्साइड प्रदूषण के खतरे को लेकर आगाह किया था. उन्होंने टाइम पत्रिका को बताया था कि वे औद्योगिक स्रोतों से ग्रीनहाउस गैस के रूप में कार्बन डाइऑक्साइड के निकलने का क्या प्रभाव होगा और वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते जमाव से किस तरह ग्लोबल वॉर्मिंग का संभावित खतरा है, इसको लेकर काम कर रहे हैं. 

उन्होंने तब कहा था कि मौजूदा सदी के दौरान औद्योगिक कामकाज में भारी बढ़ोतरी से वातावरण में बहुत ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड जा रही है. उनके मुताबिक, "कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि की मौजूदा दर जारी रही तो धरती के औसत तापमान में 1.5 डिग्री फ़ारेनहाइट प्रति 100 बरस की दर से वृद्धि होती जाएगी. ...अगर औद्योगिक विकास जारी रहा तो आगे सदियों तक धरती की जलवायु ज्यादा गरम होती जाएगी." 

प्लास के इस रहस्योद्घाटन से तब दुनिया भर में सनसनी मच गई थी. 1956 के बाद प्लास ने इस विषय पर अनेक लेख प्रकाशित किए. उनका पूर्वानुमान था कि कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दोगुनी होने से धरती 3.6 डिग्री सेल्सियस तक गरम हो जाएगी. यही नहीं, उन्होंने कह दिया था कि सन् 2000 में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर सन् 1900 की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक हो जाएगा और धरती तब के मुकाबले लगभग 1 डिग्री सेल्सियस अधिक गरम होगी. 

सन् 1942 से लेकर भौतिकविज्ञानी के रूप में अनेक संस्थानों और विश्वविद्यालयों में कार्यरत रहे प्लास का सन् 2004 में निधन हो गया था. शायद वे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने 1961 में ग्लोबल वार्मिंग के लिए ज्यादातर जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल को दोषी ठहराया था. 

2007 में, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आइपीसीसी) की चौथी आकलन रिपोर्ट ने थोड़े से अंतर से उनके ही अनुमानों की पुष्टि कर दी थी. उसने कहा था कि कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दोगुनी होने से जलवायु 2 से 4.5 डिग्री सेल्सियस तक गरम हो जाएगी. उसने यह भी कहा था कि कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में औद्योगिक काल से पहले के मुकाबले 37 प्रतिशत वृद्धि हुई है और सन् 1900 से सन् 2000 के बीच गरमी लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ गई है. 2018 में जो पुरस्कार विजेता लघु फिल्म इनविजिबल ब्लैंकेट बनी थी, वह टाइम पत्रिका में प्लास के लेख पर ही आधारित थी. 

उस जमाने में प्लास ने वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को लेकर जो करीब 310 पीपीएम (भाग प्रति दस लाख) स्तर बताया था, वह कितना सटीक था, इसका पता आज के 421 पीपीएम को देखकर लगता है. और यह स्तर हर साल बढ़ता जा रहा है, जिससे दुनिया में गरमी भी सरपट दौड़ रही है.

चित्र साभार: www.americanscientist.org/article/carbon-dioxide-and-the-climate

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