मणिपुर में हिंसा: समस्या का समाधान क्या है? (किस्त 2)
इस समय मणिपुर की जो स्थिति है, उसके मद्देनजर क्या किया जाना चाहिए?
पहली बात तो यह समझने की
है कि अपने ज़हरीले एजेंडा के तहत कट्टर हिंदुत्ववादी ताकतों ने राज्य में नफरत का
जो जबरदस्त माहौल बनाया है, उसमें सब कुछ खो नहीं गया है. अभी उम्मीद की भी कुछ किरणें
बाकी हैं.
दंगों में सभी मैतेई
शामिल नहीं हैं. उनके अनेक नेता और विचारक इसके विरोध में उतरे हैं. जवाब में
उनमें से कुछ के घरों पर हमले हुए और उन्हें भूमिगत हो जाना पड़ा. इंफाल से कोई 45
किमी दूर मोइरांग में जब एक हथियारबंद गिरोह किसी क्रिश्चियन स्कूल पर हमला करने
आया तो उसे रोकने के लिए मैतेई माता-पिता और छात्र उसके गेट पर जाकर खड़े हो गए. उधर, पड़ोस के चुराचांदपुर में, जब कुछ कुकी पुरुष मैतेई लोगों पर हमला करने की योजना बना
रहे थे, तो कुकी महिलाओं ने उन्हें रोकने के लिए मानव शृंखला बना ली
थी.17
ऐसी कई मिसालें हैं जो बताती हैं कि सुलह की दिशा में कोशिशें की जा सकती हैं. यहां तक कि नगाओं को कुकी लोगों से भिड़ाने की कोशिश के दौरान ही कुछ नगा संगठन और नगालैंड के कुछ राजनैतिक नेता राहत सामग्री लेकर एकजुटता जताने के लिए कुकी गांवों में जा पहुंचे थे.18
यही नहीं, राज्य में और इस समूचे क्षेत्र में विभिन्न समुदाय शांति कायम करने के लिए प्रार्थना सभाएं कर रहे हैं. अनेक धार्मिक नेताओं ने सभी से शांति स्थापित करने का अनुरोध किया है. कुछ लोगों ने तो सत्य एवं मेल-मिलाप आयोग बनाए जाने की मांग की है. पूर्वोत्तर की महिला संस्थाओं ने अपीलें जारी की हैं और विभिन्न बस्तियों में "माताओं की शांति समितियों" का गठन किया है.19
दूसरी बात यह समझने की है कि दुनिया में आज हम जिस कॉर्पोरेट पूंजीवादी सिस्टम के अंतर्गत रह रहे हैं, उसमें सभी देश अलग-अलग होते हुए भी एक-दूसरे पर निर्भर हैं. भारत उसी सिस्टम की ही एक कड़ी है. दुनिया के इस अंतरनिर्भर सिस्टम की तरह भारत में भी अलग-अलग तरह के सामाजिक, धार्मिक, जातीय, जनजातीय, मूल निवासी समुदायों वगैरह के अलग-अलग रहन-सहन, रीति-रिवाज, प्रथाएं होने के बावजूद वे सभी एक-दूसरे पर निर्भर हैं.
इसी तरह, मणिपुर में भी हर समुदाय के हित दूसरे समुदाय के हितों से जुड़े हुए हैं, एक की सुरक्षा दूसरे की सुरक्षा से जुड़ी हुई है. ऐसे में, जाहिर है, एक की तरक्की हुए बिना दूसरे की तरक्की नहीं हो सकती. लेकिन
देश को कुछ सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी देने वाले इस राज्य में इस समय मुख्य रूप से मैतेई, कुकी और नगा जो तीन मूल निवासी समुदाय हैं, दुर्भाग्य से, उनके बीच अविश्वास का बीज बो दिया गया है. इसमें सबसे बड़ी भूमिका मुख्यमंत्री
बीरेन सिंह और उनकी सरकार ने निभाई है.
लिहाजा, आज पूरे मणिपुर को लपेट में ले लेने वाली इस गंभीर समस्या के मद्देनजर सबसे
पहले तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चाहिए कि वे मणिपुर के सभी समुदायों से
शांति कायम करने की अपील करने और उन्हें राज्य की समस्या का समाधान ढूंढ़ने के
प्रति आश्वस्त करने के साथ-साथ मौजूदा हालत से निबटने में अक्षम हो चुकी बीरेन सिंह की सरकार को बर्खास्त करने की घोषणा करें.
इसके अलावा, मणिपुर के राज्यपाल को भी कुछ आपात कदम उठाने होंगे. हमारे सुझाव में वे:
(2) जिन पहाड़ी इलाकों
में पेट्रोलियम और कोबाल्ट के कथित भंडार खोजे गए हैं, वहां से आदिवासियों को आतंकित करके उन्हें घर-परिवार से खदेड़ने की कोशिशें
बंद करने का आदेश दें.
(3) तीनों मूल निवासी
समुदायों से संबंधित सिविल सोसायटी के लोगों को आगे लाकर शांति स्थापित करने की
प्रक्रिया शुरू करें, जो हर क्षेत्र में जाकर बातचीत के जरिये दशकों
से हिंसा के बीच रहने वाले समुदायों के टूटे दिलों को जोड़ने का काम करें;
(4) सिविल सोसायटी समूहों
की पहली बैठक में ही आपसी किसी भी समस्या को सुलझाने के लिए सैन्य तरीकों या हिंसा
के इस्तेमाल का नहीं बल्कि बातचीत का रास्ता अपनाने का संकल्प लें;
(5) उसी बैठक में सभी के
परामर्श से एक तथ्य खोजी आयोग के गठन की घोषणा करें, जो दंगों के पहले और उसके
दौरान हुई घटनाओं की सचाई का पता लगाकर दो माह के भीतर अपनी रिपोर्ट दे.
लेकिन यह सब कुछ करने के बाद भी मूल समस्या का समाधान नहीं हो जाता. इसका उचित और तर्कसंगत समाधान तभी हो सकता है जब राज्य के तीनों समुदायों को ज्यादा से ज्यादा संभव संवैधानिक स्वायत्तता देकर उनकी जातीय एवं क्षेत्रीय आकांक्षाएं और हित पूरे किए जाएं.
सभी समुदायों के हितों
में सामंजस्य बनाकर, अगर हो सके तो, एक ही राज्य के भीतर बने
रहने को लेकर सहमति बनाना ज्यादा अच्छा विकल्प है. इसके तहत मैतेई, कुकी और नगा क्षेत्रों में उनकी अपनी-अपनी निर्वाचित क्षेत्रीय परिषदें गठित किए जाने का प्रावधान करना चाहिए, जो अपने-अपने क्षेत्रों में पर्यावरण संबंधी मसलों, मनुष्य से जुड़े मुद्दों और संवैधानिक-क़ानूनी मामलों के बारे में सभी प्रकार के
फैसले लेने में सक्षम हों.
एक राज्य बने रहने की स्थिति में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाना चाहिए, जिसके अंतर्गत केवल उन्हीं लोगों को अनुसूचित जाति की सुविधाएं दी जाएं, जिनके जीवन-यापन का स्तर गरीबी रेखा के नीचे हो; इसी तरह कुकी और नगा समुदायों में भी सिर्फ गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को ही अनुसूचित जाति की सुविधाएं दी जानी चाहिए.


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