Thursday, August 28, 2014

भाजपा में यह सत्ता संघर्ष ही तो है

भाजपा में चल रहे आंतरिक संघर्ष को मैं उस पार्टी के भीतर चल रहा सत्ता संघर्ष मानता हूं. इस मामले में एक दोस्त ने टिप्पणी की है कि "इसमें सत्ता संघर्ष कहां है? पिछले छह माह के दौरान उनके पास सत्ता कहां थी?"

सच बात तो यह है कि ऐसे दोस्त एक महत्वपूर्ण चीज़ को भूल जाते हैं. और वह यह कि सत्ता संघर्ष हमेशा सरकार से जुड़ा हुआ नहीं होता है. सभी राजनैतिक संघर्षों को गौर से देखें तो वे मूलतः सत्ता संघर्ष ही होते हैं. किसी समय विशेष में कोई संघर्ष आंतरिक पार्टी संघर्ष या अंतर-पार्टी संघर्ष का रूप भी ले सकता है. यहां पार्टी से अभिप्राय राजनैतिक पार्टी है.

लेकिन मैं अकेले संघर्ष को किसी प्रक्रिया में सर्वोच्च नियम नहीं मानता हूं. जिस तरह प्रकृति और समाज में आंतरिक और अंतर संघर्ष तथा एकता दोनों ही प्रक्रियाएं साथ-साथ चलती हैं, जिसमें किसी समय विशेष में संघर्ष और दूसरे समय विशेष में एकता मूल भूमिका में होती है, उसी तरह किसी समाज की वैचारिक इकाइयों में (जिनमें राजनैतिक पार्टियां भी शामिल हैं) भी आंतरिक और अंतर संघर्ष तथा एकता दोनों ही प्रक्रियाएं साथ-साथ चलती हैं. राजनैतिक पार्टियों में भी किसी समय विशेष में संघर्ष और दूसरे समय विशेष में एकता मूल भूमिका निभाती है.

भाजपा भी आंतरिक और अंतर संघर्ष तथा एकता की सामाजिक प्रक्रिया के मामले में अपवाद नहीं है. यह पार्टी कांग्रेस (और दूसरी पार्टियों) के साथ अंतर संघर्ष और एकता की निरंतर प्रक्रिया में कभी आगे बढ़ी और कभी पीछे हटी. एकता का मतलब है कि कई मामलों में उसने कांग्रेस (और दूसरी पार्टियों) का साथ भी दिया, जिसकी सबसे बड़ी मिसाल भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान देखने को मिलती है.

लेकिन कांग्रेस (और दूसरी पार्टियों) के साथ अंतर संघर्ष और एकता के साथ-साथ उसके भीतर भी एकता और संघर्ष चलते रहे हैं. उसके भीतर एकता तो सब जानते हैं, मगर संघर्ष के रूप में दो स्पष्ट मिसालें भी हैं. एक तो बलराज मधोक के समय भाजपा (तत्कालीन जनसंघ) के भीतर सत्ता संघर्ष और दूसरे अटल बिहारी वाजपेयी के समय संघ परिवार (और अनिवार्यतः भाजपा) में वाजपेयी और परोक्ष रूप में के.एस. सुदर्शन के बीच संघर्ष.

लेकिन जब हम आज भाजपा में आंतरिक संघर्ष की बात करते हैं उसका यह मतलब नहीं है कि उस पार्टी के अंदर केवल संघर्ष ही है. उसमें अपनी वैचारिक एकता भी है. लालकृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी में अनेक बातों और मुद्दों को लेकर विचारों की एकता है. इससे आडवाणी ने भारतीय समाज में जो प्रतिगामी भूमिका निभाई है, उससे वे बरी नहीं हो जाते.

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