कर्नाटक नतीजों के बाद बेमेल-सा दिख रहा मोदी गठबंधन
व्यंग्य चित्र साभार: सी.आर. ससिकुमार (इंडियन एक्सप्रेस)
द ट्रिब्यून समूह के प्रधान संपादक रह चुके जाने-माने पत्रकार, और मनमोहन सिंह के जमाने में पूर्व प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार रहे हरीश खरे का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी सरकार चलाने के लिए 2014 में जो गठबंधन बनाया था, उसके घटक कर्नाटक के चुनाव नतीजों के बाद आज बेमेल-से दिखने लगे हैं. दिलचस्प है कि "द वायर" न्यूज पोर्टल के अंग्रेजी संस्करण में प्रकाशित अपने लेख में उन्होंने इस बेमेल मोदी गठबंधन के छह घटक बताए हैं.
उनके अनुसार, इनमें प्रथम महत्वपूर्ण घटक को "आधुनिकतावादी" के रूप में चिन्हित किया जा सकता है. इसमें शामिल व्यक्ति लोकतंत्र के विचार को रद्द तो नहीं करते, लेकिन इस तंत्र के कुरूप पक्ष के चलते वे मोदी सरीखे ऐसे "मजबूत" नेता को पसंद करते हैं, जो लोकतांत्रिक शालीनताओं को ताक पर रख दे.इस गठबंधन के दूसरे खास घटक में वे कॉर्पोरेट कंपनियों के अगुआओं, क्रोनी पूंजीपतियों और उनके चतुर-चालाक किस्म के सहायकों को रखते हैं. उनके मुताबिक, जब तक मोदी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को कॉर्पोरेट जगत की सेवा में लगाए रखेगी और मजदूर संगठनों वगैरह को बलपूर्वक दबाती रहेगी, कॉर्पोरेट कंपनियां मोदी के पीछे कतारबंद रहेंगी.
खरे ने मोदी गठबंधन का तीसरा तत्व हिंदू घटक को बताया है, जिसका कोई एक रूप नहीं है. इनमें कुछ परंपरावादी, रूढ़िवादी हैं, जो हिंदू पुनर्जागरण से तो उत्साहित हैं, लेकिन हिंदू-मुस्लिम मानस बनने से असहज महसूस करते हैं; फिर, "सांप्रदायिक" हिंदू हैं, जिन्हें मुसलमानों के प्रति हर समय शत्रुता की भावना बनाए रखना उचित लगता है; इसके साथ ही हिंदुत्व की लंपट भीड़ है, जो विभिन्न धूर्त संगठनों, सेनाओं, दलों वगैरह से जुड़ी है और बहुत-सी जगहों में क्षुद्र आपराधिक भीड़ में बदल जाती है. मोदी के नाम पर तथाकथित "लामबंदी" में वे जमीनी सिपाही हैं.
उपरोक्त घटक का एक महत्वपूर्ण उपघटक आरएसएस का प्रतिष्ठान भी बताया गया है. खरे के अनुसार, मोदी राज के 9 वर्षों में इससे जुड़े मध्यम भाग को सहज समृद्धि का स्वाद लग चुका है और वे दंतविहीन शेर बन चुके आरएसएस नेताओं के मुकाबले प्रधानमंत्री को ज्यादा तरजीह देते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार महोदय ने सत्तारूढ़ गठबंधन के चौथे घटक को देशभक्ति की भावनाओं से ओतप्रोत बताया है. इसमें शामिल व्यक्ति "राष्ट्रीय सुरक्षा", "राष्ट्रीय सम्मान" अथवा "राष्ट्रीय गौरव" के नाम पर सभी प्रकार के लोकतंत्र विरोधी कदम और तरीके खुशी-खुशी स्वीकार करने को तैयार रहते हैं.
इनके अलावा, उनके मुताबिक, पांचवां घटक जातियों का है. मोदी शासन में सुप्रसिद्ध चाणक्यों की ओर से जातियों, उपजातियों और उप-उपजातियों की पहचान, निष्ठा और वैरभाव को लेकर अति विस्तृत योजनाएं तैयार की गई हैं. नए जातिगत नेताओं और समूहों को खड़ा करने के लिए अनंत ऊर्जा और प्रचुर संसाधन खर्च किए गए हैं, जिसके चलते मोदी ने उन सभी को "सशक्तिकरण" का एहसास करवाया है.
और अंत में खरे ने छठा घटक कांग्रेस विरोधियों और गांधी परिवार के विरोधियों का बताया है. इसमें आते हैं: मूलतः जनसंघ के लोग और चाहे कोई प्रधानमंत्री हो, परंपरागत भाजपा मतदाता; शुरू से कांग्रेस विरोधी रहा मतदाता जिसके पास कांग्रेस को नापसंद करने की वजह रही है; और नए मतदाता, जो कांग्रेस में राहुल-प्रियंका के नेतृत्व के चलते पार्टी से कट गए हैं. ये वे "शालीन" लोग हैं, जिन्हें सोनिया गांधी ने देश की राजनीति में आगे किया था लेकिन जो अपने परिवार के प्रति उनके झुकाव के चलते उकताकर मोदी के बाड़े से जुड़ गए.
इन सभी घटकों की परस्पर विरोधी इच्छाएं और अपेक्षाएं हैं, लेकिन मोदी उनमें स्थिरता, व्यवस्था, प्रगति और गौरव का भाव जमाने में अभी तक सफल चले आ रहे थे. लेकिन अब गठबंधन के इन घटकों के सुर बेमेल होने लगे हैं. जाहिर है, मोदी राज के दस साल उन सभी को समान रूप से संतुष्ट रख पाने में नाकाम हो गए हैं.

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