कैसे हो काम आबोहवा को बचाने का?
इसके लिए जरूरी है कि हर देश में हर स्तर पर गहरा सामाजिक बदलाव हो. सबको पैदावार करने और उसे इस्तेमाल करने के ऐसे तरीकों पर तेजी से चलना होगा जो धरती की मर्यादा के मुताबिक हों और उनका मकसद बेरहम मुनाफा कमाना नहीं बल्कि लोगों की जरूरतों को पूरा करना हो. निरंकुश उपभोक्तावाद को बढ़ावा देने वाले विकास के जिस मॉडल पर दुनिया आज चल रही है, वह प्राकृतिक संसाधनों को चूस लेने वाला है. वह गरीबों के हितों में तो नहीं ही है, खुद अमीरों के लिए भी खतरनाक है. ग्लोबल वॉर्मिंग अगर बढ़ती गई तो वह किसी को बख्शेगी नहीं.
लिहाजा आबोहवा में आए बदलाव को दुरुस्त करना होगा. इसमें जितनी किसी की आबोहवा को बिगाड़ने की जिम्मेदारी है, ग्रीनहाउस गैसों को कम करने में उसकी उतनी ही जिम्मेदारी तय की जाए. यह सब अपने-आप नहीं होगा. इसके लिए दुनिया में हर जगह लोगों को, इंसानी बिरादरी को बड़े पैमाने पर एक होना होगा ताकि ताकतवर सत्ताभोगी गुट, कॉर्पोरेट कंपनियां और सरकारें सामाजिक बदलाव के रास्ते में रोड़े न अटकाएं और अपनी जिम्मेदारी निभाने के साथ अपने वादे भी पूरे करने के लिए राजी हों.
यह दो-तरफा काम होगा — एक तो इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार सत्ताभोगी गुटों, कॉर्पोरेट कंपनियों और सरकारों को उनकी जिम्मेदारी पूरी करने के लिए कहना होगा और दूसरे आम लोगों को खुद ग्रीनहाउस गैसों को कम करने में योगदान देना होगा.
क्या हो सत्ताभोगी गुट, कॉर्पोरेट कंपनियों
और सरकारों की जिम्मेदारी?
और सरकारों की जिम्मेदारी?
वे सब मानें किः (1) आबोहवा को सुधारने का काम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद या ऐसे ही किसी दूसरे समूह की जगह संयुक्त राष्ट्र महासभा के हाथ में दिया जाए. इसमें फैसले बहुमत के आधार पर लिए जाते हैं और उस पर बड़ी ताकतों या अमीर देशों के प्रभुत्व की कम गुंजाइश है.
(2) मौजूदा परमाणु शक्तियां ग्लोबल वॉर्मिंग के मद्देनजर अपने सभी परमाणु और दूसरे खतरनाक हथियारों को फौरन नष्ट करें और आगे से ऐसे किसी हथियार को न बनाने का वादा करें.
(3) ये शक्तियां हर साल अपने रक्षा बजट की आधी रकम संयुक्त राष्ट्र महासभा के सुपुर्द करें.
(4) संयुक्त राष्ट्र महासभा दुनिया में देशों के बीच मौजूद आपसी टकरावों को छह माह के अंदर हल करने का काम करे. यह काम पूरा हो जाने के बाद वह बाकी सभी देशों से कहे कि वे अपने सैन्य बजट पर खर्च बंद करें और अपने-अपने रक्षा बजट की आधी रकम संयुक्त राष्ट्र महासभा के सुपुर्द करें.
(5) संयुक्त राष्ट्र महासभा फौरन बड़े पैमाने पर एक ऐसी विकास परिषद बनाए जो एक तरफ ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के साथ आबोहवा की हिफाजत करने व उसे बढ़ावा देने और दूसरी तरफ दुनिया भर में मानवीय संसाधनों के विकास के लिए एक अथॉरिटी के रूप में काम करे.
क्या हो ग्रीनहाउस गैसें कम करने में
आम लोगों का योगदान?
आम लोगों का योगदान?
वे सबः (1) अपनी-अपनी सरकारों पर कोयले, तेल और गैस से बिजली पैदा करना बंद करने को कहें और हो सके तो ऐसी बिजली इस्तेमाल न करें; विकल्प न हो तो परंपरागत बिजली का कम-से-कम इस्तेमाल करें.
(2) सरकारों को बायो-ईंधन वाली गाड़ियां चलाने को कहें और हो सके तो ऐसी गाड़ियां ही इस्तेमाल करें; विकल्प न हो तो परंपरागत ईंधन वाली गाड़ियों का कम-से-कम इस्तेमाल करें.
(3) सरकारों को ज्यादा से ज्यादा पक्के शौचालय बनवाने के लिए कहें और खुले में शौच के लिए न जाएं.
(4) सरकारों पर कूड़े-कचरे का ठीक से निबटारा करने के लिए दबाव डालें और खुद कचरा न फैलाएं.
(5) पानी का इस्तेमाल घटाने की कोशिश करें.
(6) खासकर कुदरती चीजों से उपजे उत्पादों की बर्बादी न करें या विकल्प न हो तो कम-से-कम बर्बादी करें.
(7) ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाएं.
क्या निष्कर्ष निकलता है इससे?
यही कि हम चुपचाप न बैठें. आबोहवा को बचाने के आंदोलन का हिस्सा बनें और उसमें अपनी भूमिका निभाएं. आज हमारी धरती पर ग्लोबल वॉर्मिंग का मारक असर साफ-साफ दिखने लगा है. लिहाजा अपने आसपास के लोगों के बीच ग्लोबल वॉर्मिंग के बारे में और उससे निबटने को लेकर चर्चा करना आज जरूरी हो गया है. आइए हम सोच और व्यवहार में यह नारा बुलंद करें:
जल, जंगल, जमीन बचाओ — न्यायसंगत समाज बनाओ !

































