यूरोप के द्वार पर दस्तक दे रहा आबोहवा का संकट
दो दिन पहले इटली में बारिश से जो कहर बरपा हुआ है, क्या वह संकेत तो नहीं कि आबोहवा का संकट यूरोप के द्वार पर दस्तक दे रहा है. 16-17 मई को इटली के उत्तरी भाग में मात्र 36 घंटे में इतनी बारिश हो गई जो साल भर में वहां की औसत बारिश का करीब आधी थी.
नतीजा यह हुआ कि बाढ़ के उफान से नदियों के तटबंध टूट गए और खेती की हजारों एकड़ जमीन जलमग्न हो गई. बृहस्पतिवार की शाम तक लगभग 20,000 लोग बेघर हो चुके थे और 13 व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी थी. छह माह पहले भी मूसलाधार बारिश के चलते भूस्खलन हो जाने से उसके एक दक्षिणी द्वीप में 12 लोगों की मौत हो गई थी. पिछले साल सितंबर में उसके मध्य क्षेत्र में अचानक आई बाढ़ से 11 व्यक्ति दम तोड़ गए थे. और पिछले साल जुलाई में गर्मी की लहर के दौरान जब वहां सात दशक बाद बदतरीन किस्म का सूखा पड़ा था, तो इटली के आल्प्स में हिमस्खलन होने से 11 लोग मारे गए थे.
अभी यह अनुमान लगाया जाना बाकी है कि ग्लोबल वार्मिंग का इस हफ्ते की बाढ़ पर कितना प्रभाव था. लेकिन यूरोप भर में जैसे-जैसे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का जमाव बढ़ रहा है, वैसे-वैसे मौसम की खराबी में भी वृद्धि हो रही है. जहां स्पेन और दक्षिणी फ्रांस में कई साल से लगातार सूखे ने किसानों के लिए मुश्किलें पैदा की हैं, वहीं गत वर्ष समूचे यूरोपी महाद्वीप में गर्मी की अभूतपूर्व लहर आई थी.
इटैलियन सोसाइटी ऑफ एनवायर्नमेंटल ज्योलॉजी के विशेषज्ञ पाओला पाइनो द'अस्तोर का कहना था, "आबोहवा में बदलाव आ चुका है और हम उसका खामियाजा भुगत रहे हैं. इसकी संभावना कोई दूर की बात नहीं, बल्कि यह स्थिति अब आ गई है." विशेषज्ञों का कहना है कि इटली का भूगोल ऐसा है कि यहां आबोहवा का संकट गंभीर रूप ले सकता है.

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