Saturday, June 24, 2023

कॉ. सराफ की 14वीं बरसी पर श्रद्धा सुमन

दोस्तो और साथियो !

आज कॉ. रामप्यारा सराफ को हमसे बिछुड़े एक साल और गुजर गया. सन् 2009 में आज के दिन ही उनका देहांत हो गया था. तब कुदरत और इंसान की दोस्ती का नजरिया मानने वालों के लिए यह जबरदस्त धक्का था. मगर हम सब जानते हैं कि कुदरत और इंसान का कभी न खत्म होने वाला सफर कहीं रुकता थोड़ी न है. इसलिए कुदरत और इंसान की दोस्ती का नजरिया मानने वालों के लिए जरूरी था कि वे इस धक्के को बरदाश्त करते हुए उस सफर में आगे बढ़ें. बहरहाल, 14 साल का यह अरसा बड़ी तेजी से गुजर गया है.

इस अरसे में हमने क्या खोया और क्या पाया है? यह सभी के सोचने का विषय है, उन सभी के सोचने का जो कुदरत और इंसान की दोस्ती के नजरिये को आगे बढ़ाने में दिन-रात लगे हुए हैं. मैं इस बारे में कोई ज्यादा नहीं कहना चाहूंगा, क्योंकि किसी जन आंदोलन में सीधे हिस्सा न ले पाने की वजह से मुझे नहीं लगता कि मैं जन आंदोलनों में काम कर रहे अनेक साथियों जितना सक्षम हूं.

हां, मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि कुदरत और इंसान की दोस्ती का नजरिया मानने वालों में आज भी ज्यादा से ज्यादा एका बनाने की जरूरत है. इसके बिना किसी बड़े जन आंदोलन को खड़ा कर पाने में शायद उतनी कामयाबी न मिल पाए. बहरहाल, अपने पिछले काम की समीक्षा करने से हमें अपने पॉजिटिव और नेगेटिव पक्षों को समझने में मदद मिलती है. इससे यह रचनात्मक यानी कंस्ट्रक्टिव दिशा भी मिलती है कि आगे की समस्याओं को कैसे हल किया जा सकता है.

1970 से लेकर 1985 के दौरान 15 साल के अपने राजनैतिक जीवन में मुझे ज्यादातर कॉ. सराफ के साथ काम करने और रहने का अवसर मिला था, और मैंने उनसे इतना कुछ सीखा है कि चंद लफ्जों में उसे बयान नहीं कर सकता. राजनैतिक जीवन से हट जाने के बाद भी उनके जीवन और कार्यों का मुझ पर इस कदर गहरा असर रहा है कि मुझे उनकी कमी लगातार महसूस होती रही और जैसे-जैसे मेरी उम्र बढ़ रही है, कमी का यह एहसास और गहराता जा रहा है.

फिर भी जितना मैंने सीखा, उसे मुख्तसर लफ्ज़ों में कहूं तो पहली बात यह है कि अपने इर्दगिर्द यानी जिस जगह में, जिस इलाके में, जिस दुनिया में, जिस कायनात में हम रहते हैं, उसमें हो रही चीजों को, प्रक्रियाओं को या घटनाक्रमों को लगातार देखते-परखते रहना जरूरी है, यानी उन्हें स्टडी करते रहना जरूरी है. इनमें कुछ प्रक्रियाएं या घटनाक्रम कुदरत से जुड़े हैं, तो कुछ समाज से, और कुछ का संबंध सोच से है. इन्हें स्टडी करने से हमारा ज्ञान तो गहरा होता ही है, हमें अपने नजरिये को व्यापक बनाने में भी मदद मिलती है. और इससे हमारे सोचने के साथ-साथ सामाजिक इंटर-एक्शन या मेल-मुलाकात का दायरा भी बड़ा होता जाता है.

दूसरे, किसी चीज को, किसी प्रक्रिया को या किसी घटनाक्रम को स्टडी करने का मकसद उसे न सिर्फ बाहर से बल्कि अंदर से भी अच्छी तरह जानना-समझना है; यानी उसके पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों पक्षों को ही समझना है. इससे हमें यह दिशा मिलती है कि हम पॉजिटिव को आगे बढ़ाते जाएं और नेगेटिव से सबक लेकर उससे छुटकारा पा लें. और यह काम भी उतना ही जरूरी है.

तीसरे, ये सभी प्रक्रियाएं या घटनाक्रम कोई अटल-अचल नहीं हैं और उनमें नित नया विस्तार या सुधार होता रहता है, इसलिए उन्हें भी गहराई से स्टडी करते रहना जरूरी है. कोई विस्तार या सुधार पॉजिटिव है या नेगेटिव, उसके अनुसार हमें भी अपने ज्ञान, दृष्टिकोण और सोच में वैसे बदलाव लाने चाहिए. 

चौथे, इस तरह प्राप्त ज्ञान, दृष्टिकोण और सोच को हमें कुदरत और इंसान की तरक्की के काम में लगा देना और उससे सीखते रहना चाहिए. यही हर सही और सच्चे इंसान का फर्ज है. और ये चारों बातें कॉ. सराफ के सिद्धांत-व्यवहार-सिद्धांत यानी थ्योरी-प्रैक्टिस-थ्योरी को लेकर मान्यता में ही छिपी हुई हैं.

एक बात और. मेरे ख्याल में जलवायु संकट यानी क्लाइमेट क्राइसिस के बारे में जागरूकता पैदा करने के मौजूदा आंदोलन के दौरान सामाजिक व्यवस्था में बदलाव और विकास का हमारा रास्ता काफी लंबा रास्ता है. इसमें कई उतार-चढ़ाव आने लाजिमी हैं. और फिर, आज के दौर में जब कॉर्पोरेट्स के दो धड़ों के बीच आपसी लड़ाई हर जगह तेज हो गई है, हमें सोचना होगा कि अपना और अपने साथियों का मनोबल कैसे ऊंचा उठाए रखें.

कॉ. सराफ के बाद कुदरत और इंसान की दोस्ती वाला उनका नजरिया मानने वालों के लिए फिलहाल मैं यह कहना चाहूंगा कि 24 जून 2009 के बाद दुनिया भर की नदियों में कितना ही पानी बह गया होगा और कितने ही घटनाक्रम पूर्ण हो चुके होंगे और कितने ही हो जाने की प्रक्रिया में होंगे या होने वाले होंगे. इन सभी की जानकारी कुदरत और इंसान की दोस्ती वाले नजरिये से लोगों तक पहुंचाने के लिए आज हमें ऐसे मीडिया सेल की सख्त जरूरत है जिसमें अनुभवी साथी चल रहे घटनाक्रमों का मूल्यांकन करें और अपने नजरिये की रोशनी में लोगों के सामने रखें. 

इस संबंध में, मैं साथियों का ध्यान 2009 के अंत में या पता नहीं 2010 के शुरू में जोधपुर में हुई ऑल इंडिया मीटिंग की ओर दिलाना चाहूंगा, जिसमें विचार-विमर्श के दौरान कुछ साथियों ने अपने संगठन का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया शुरू करने का सुझाव रखा था. उस समय अभी शुरुआती अवस्था में होने के कारण यह सुझाव भले ही अमल में लाने योग्य नहीं समझा गया था, लेकिन आज मुझे लगता है, इस पर काम करना वक्त का तकाज़ा है. 

लिहाजा, आज में विनम्रतापूर्वक दो सुझाव आपके विचारार्थ रखना चाहूंगा:  

एक, कुदरत और इंसान की दोस्ती वाले नजरिये के प्रचार-प्रसार के लिए अपने उपयुक्त मंच पर एक मीडिया सेल बनाने का फैसला लें, जो दोनों तरह के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के साथ ही सोशल मीडिया के दायरे में भी काम करने की जिम्मेदारी ले. 

दूसरे, अगले साल कॉ. सराफ के जन्म शताब्दी बरस के दौरान दक्षिण एशिया के हर देश में और इंडिया की हर स्टेट में कुदरत और इंसान की दोस्ती मानने वाली सभी ताकतों को एकजुट करने की दिशा में एक टाइम-बाउंड प्रोग्राम बनाकर उस पर अमल करने का संकल्प लें.

इस दिशा में जितनी जल्दी काम शुरू कर सकें, उतना बेहतर है. कॉ. सराफ को इस साल हमारी यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

धन्यवाद !











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