शोर भले ही थम गया है, पर असहिष्णुता जारी है
असहिष्णुता का शोर आज भले ही थम गया है, पर खुद असहिष्णुता पहले की तरह जारी है. समाज में यह चलन हमेशा से रहा है. नए विचार लोगों को पचते नहीं है. खासकर समाज के जिन थोड़े से लोगों के निहित स्वार्थ होते हैं, वे नए विचारों के दुश्मनी की हद तक विरोधी होते हैं, लेकिन ज्यादातर लोग समझ नहीं होने के कारण पुराने विचारों में अटके रहते हैं, चाहे वे उनके अपने अस्तित्व के विरुद्ध हों.
मशहूर अंग्रेज कवि रॉबर्ट फ्रॉस्ट ने शायद ऐसी ही स्थिति में कभी कहा था, ‘‘शिक्षा वह गुण है जो आपको अपना आत्म विश्वास अथवा आपा खोये बिना किसी भी बात को सुनने, सहने की क्षमता प्रदान करता है.’’ इसी बात को फ्रॉस्ट से कोई 2,200 साल पहले पैदा हुए अरस्तु ने दूसरे तरीके से रखा था. उनका कहना था, ‘‘शिक्षित होने का लक्षण यह है कि आदमी किसी विचार को स्वीकार किए बिना उस पर विचार करता है.’’
फ्रॉस्ट (1874-1963) रहने वाले तो अमेरिका के थे, लेकिन उनकी ज्यादातर कृतियां पहले इंग्लैंड में ही प्रकाशित हुईं. उनकी ख्याति ग्रामीण जीवन का वास्तविक चित्रण करने के चलते हुई. उधर, अरस्तु (384-322 ई.पू.) यूनानी दार्शनिक थे और वैज्ञानिक भी थे. तर्कशास्त्र पर उस जमाने में उन्होंने बहुत काम कया और भारतीय दर्शन की तरह पश्चिमी विचार शैली में भी माने गए वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी और आकाश से गठित पंचतत्व में से पांचवें तत्व आकाश की खोज उन्हीं की है.


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