पूरी तरह पीछे मुड़ना या 180 डिग्री का मोड़ काटना इसे ही कहते हैं. वह बात भी स्वीकार्य हो सकती है. लेकिन चित भी मेरी, पट भी मेरी की कलाबाजी करना दरअसल धौंसबाजी ही है. कोई यह कहे कि मैं पहले जो कहता रहा या करता रहा वह तो ठीक था और उसके ऐन उलट अब जो कह या कर रहा हूं, वह भी ठीक है, तो यह धौंसबाजी के सिवा कुछ नहीं है. भाजपा का रुख भी कुछ वैसा ही है.
अभी दो दिन पहले भाजपा की अगुआई वाली केंद्र सरकार ने भारतीय नागरिकों के लिए कानून के तहत आधार कार्ड बनाना अनिवार्य बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि किसी नागरिक का अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार नहीं है और निजता के अधिकार की बात कपोल कल्पना है. उनका तर्क था कि अगर ऐसा अधिकार होता तो लोग अपने शरीर के साथ जो चाहे करने को स्वतंत्र होते -- यानी कोई नागरिक आत्महत्या जैसा कदम उठाने अथवा कोई महिला उन्नत चरण में गर्भ समाप्त करवाने या कोई व्यक्ति नशीली दवाएं लेने को स्वतंत्र होता. लेकिन कानून ऐसा कुछ करने की अनुमति नहीं देता. ( https://goo.gl/22yV13 ).
दिलचस्प है कि नरेंद्र मोदी ने, जो तब इसी पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे, करीब तीन साल पहले 8 अप्रैल 2014 के एक ट्वीट में आधार कार्ड को एक ‘‘राजनैतिक नौटंकी’’ करार दिया था और उसे ‘‘सुरक्षा के लिए खतरा’’ बताते हुए चिंता जताई थी. ( https://goo.gl/rfMVuM ). इससे पहले पार्टी की तत्कालीन उपाध्यक्ष स्मृति ईरानी ने 22 अक्तूबर 2013 को कहा था कि आधार कार्ड की अवधारणा संसद से अनुमोदित नहीं (यानी गैरकानूनी) है और उसके तहत बायोमीट्रिक डाटा जुटाना निजता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है. ( https://goo.gl/qfJZ9q ).
अजीब बात यह कि भाजपा को यह समझने में तीन-चार साल लग गए कि किसी नागरिक का अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार (absolute right) नहीं है और निजता के अधिकार की बात कपोल कल्पना है. ठीक है, किसी व्यक्ति, संगठन या संस्था को समय के साथ अपनी कोई अवधारणा बदलने का अधिकार है. लेकिन नैतिकता भी कोई चीज है और उसका तकाजा है कि बदलने से पहले कोई यह तो बताए कि उसकी पुरानी अवधारणा क्यों गलत हो गई और नई अवधारणा बनाने का उसका क्या आधार है. और पार्टी ने इस बारे में अभी तक कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है.
बहरहाल, अपना मानना है कि आज के युग में किसका, किस पर क्या अधिकार है, इसका फैसला कॉर्पोरेट पूंजीपतियों के हितों से तय होता है. सरकार कांग्रेस की हो जा भाजपा की, काम वही करती हैं जो कॉर्पोरेट पूंजीपतियों के हित में होता है. ऐसे में भाजपा सरकार कोई अपवाद नहीं है. यही वजह है कि आधार कार्ड बनाने की वजह और उसके जो नियम कांग्रेस ने बनाए थे, भाजपा को उनका पालन करना ही था. वह उनसे इतर नहीं जा सकती थी.
कांग्रेस और भाजपा दरअसल एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. दोनों का मकसद किसी न किसी तरीके से सत्ता पर कब्जा करना है. और इसके लिए वोट जुटाने की खातिर कांग्रेस नरम हिंदुत्व की पैरोकारी करती है तो भाजपा कट्टर हिंदुत्व की वाहक बन जाती है. लेकिन दोनों कॉर्पोरेट पूंजीपतियों के हित साधती हैं और उन्हीं की रक्षा करती हैं. इसलिए सरकार चाहे किसी की बने, उनकी बुनियादी नीतियां नहीं बदलतीं.


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