Monday, May 1, 2017

आज अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस है. यह हर साल 1 मई को दुनिया भर में मनाया जाता है. वजह यह कि 1886 में इस दिन अमेरिका में शिकागो शहर के मजदूरों ने दिन भर में आठ घंटे से ज्यादा काम न करने और दूसरी मांगों को लेकर हड़ताल की थी. तब मजदूरों पर गोली चली और उनका खून बहा, जिससे उन्हें कोई फौरी फायदा तो नहीं हुआ था. लेकिन इससे पूरी ‍दुनिया के मजदूरों में मानवीय परिस्थितियों में काम करने को लेकर जागृति पैदा हुई और अंतत: लगभग हर देश में मजदूरों से दिन में आठ घंटे काम करने को लेकर कानून बने.

लेकिन आज मजदूर आंदोलन को अनेक चुनौतियों का सामना है. सबसे बड़ी समस्या तो यही है कि मजदूरों की तथाकथित नुमांइदा ट्रेड यूनियनें अपराधी और भ्रष्ट राजनैतिक पार्टियों और नेताओं की जी-हजूर और वफादार बन गई हैं. ऐसी पार्टियां और नेता जो कॉर्पोरेट पूंजीपतियों, उनकी राजनीति और व्यवस्था की निरंतर सेवा में लगे हुए हैं. मजदूरों में एकता न होना वगैरह भी  समस्याएं तो हैं, लेकिन इतनी बड़ी नहीं. मजदूर आंदोलन की असली चुनौती यही है कि उसके फौरी विरोधी ही उसकी पांतों में सबसे आगे बैठे हैं.

मजदूर आंदोलन के हितैषियों को तीन काम करने चाहिए. 

एक तो राजनीति, अर्थव्यवस्था, कानून और संस्कृति के बारे में जानकारी मुहैया करके उनकी समझ का स्तर बढ़ाना चाहिए और साथ ही दुनिया की सामाजिक हकीकत और उसके तकाजों से भी उनका परिचय कराना चाहिए. 

दूसरा काम यह कि ट्रेड यूनियनों में हमेशा और हर कहीं लोकतांत्रिक शैली पर बल देना चाहिए, जिसके अंतर्गत मजदूर नेताओं को हर समय मजदूरों के प्रति जवाबदेह होना चाहिए, महिलाओं को नेतृत्व में यथोचित नुमांइदगी देनी चाहिए और मजदूरों की हर मांग को पूरा कराने के‍ लिए बातचीत, सुलह, मध्यस्थता और हड़ताल जैसे कानूनी और शांतिपूर्ण तरीके अपनाए जाने चा‍हिए. 

तीसरे, एक संस्था में एक यूनियन की नीति अपनाते हुए मजदूरों में उनकी फौरी और लंबे अरसे की मांगों को लेकर एकता बनानी चाहिए. 

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