Monday, October 31, 2016

Collected Works of R.P. Saraf (Volume 3)


You can now open Collected Works of R.P. Saraf (Volume 3) by clicking the following link:
अब आप अंग्रेजी में आर.पी.सराफ की संकलित रचनाएं (खंड 3) को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके खोल सकते हैं:
श्री आर.पी. सराफ की संकलित रचनाअों के इस तीसरे खंड में जनवरी 1995 से लेकर दिसंबर 1998 तक की उनकी रचनाएं हैं. जब उन्होंने ये लेख लिखे थे, वह चार साल का ऐसा दौर था जब वे और उनके साथी इंटरनेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी के रास्ते के अधबीच थे. इस पार्टी का गठन उन्होंने मार्क्सवाद-लेनिनवाद को अलविदा कहने के बाद मध्य 1986 में किया था. इस विचारधारा को वे पंजाब यूनिवर्सिटी, लाहौर से अपनी औपचारिक शिक्षा पूरी करने के बाद 1946-47 से मानते आए थे.
यह वह दौर भी था जब सोवियत संघ के टूटने और समाजवादी खेमे के बिखर जाने पर दुनिया एकध्रुवीय प्रणाली के संक्षिप्त दौर के बाद एक बहुध्रुवीय प्रणाली की तरफ बढ़ रही थी; भारतीय राजनीति अस्थिर और अनिश्चित हालत में थी, जिसमें लोग सभी भ्रष्ट राजनैतिक गुटों से उकता चुके थे और 11वें तथा 12वें लोकसभा चुनाव भी हालात को सुधारने में नाकाम रहे थे; भारत और पाकिस्तान दोनों के परमाणु विस्फोटों ने दक्षिण एशियाई लोगों तथा विश्व समुदाय को झकझोर दिया था; विकास के लिए क्षेत्रीय सहयोग की अवधारणा एशिया में लोकप्रिय हो रही थी; और जम्मू-कश्मीर में एक अघोषित भारत-पाकिस्तान युद्ध विकसित हो रहा था.
इन सभी मुद्दों की चर्चा श्री सराफ ने इंटरनेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक व्यूपॉइंट में छपते रहे उस दौर के अपने लेखों में गहराई से की है. इस पत्रिका के वे शुरू से ही संपादक, मुद्रक और प्रकाशक थे. उन्होंने कई दूसरे विषयों पर भी अपने विचार प्रकट किए. इन चार साल के दौरान उनका फोकस भारत के राष्ट्रीय संकट पर रहा, जिसे राष्ट्रीय निर्माण की प्रक्रिया पर काबिज यहां के सत्तारूढ़ राजनैतिक दलों ने पैदा किया था. इसलिए उन्होंने भारत के पुनर्गठन के एजेंडे को लेकर खुद अपना खाका पेश किया. इसका मकसद भारत और दुनिया में एक न्यायसंगत और निष्पक्ष सामाजिक व्यवस्था कायम करना था, जो प्रकृति हितैषी और मानव हितैषी हो, वैज्ञानिक वास्तविकतावाद जिसका सामान्य दृष्टिकोण हो और वैश्विकता अथवा तर्कसंगत मानवतावाद जिसकी सामाजिक विचारधारा हो. श्री सराफ ने इस विषय पर कोई 15 लेख लिखे.
वैश्वीकरण की जारी प्रक्रिया और इसके निहितार्थ भी उनकी निगाह से नहीं बच पाए और उन्होंने मानव अंतरनिर्भरता और उसकी प्राथमिकताओं की मौजूदा स्थिति, मानव समाज का मौजूदा आचरण, अन्यायपूर्ण परमाणु अप्रसार संधि, परमाणु हथियारों के बारे में सही और गलत, मौजूदा दुनिया में लिंग असमानता, बहुध्रुवीय दुनिया में महाशक्तिवाद जैसे सवालों को उठाया.
वैश्वीकरण से उनका अभिप्राय: यह था कि मौजूदा राष्ट्रीय ढांचों में जरूरी बदलाव होने के साथ समूचा मानव समुदाय आखिर एक सामाजिक इकाई बनेगा. उनका कहना था, ‘‘इस प्रक्रिया के दौरान मनुष्य की सभी समस्याएं विश्व स्तर की हो जाएंगी. मनुष्य जाति इन्हें सुलझाने लगेगी तो एक तरफ मानव समाज के हितों और प्रकृति के बीच तथा दूसरी तरफ खुद मानव समाज के अंदर तर्कसंगत रूप से समरसता पैदा होगी. देशों के बीच और हरेक देश के अंदर ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, लिंग असमानता और दूसरे फर्क न्यायसंगत तरीके से मिटेंगे. मानव समुदाय क्षेत्रवार या समूहवार नहीं बल्कि समूचे तौर पर समृद्ध होगा. यह गलत समझ है कि वैश्वीकरण के इस युग में कोई एक देश या एक ब्लॉक दूसरों पर हावी हो सकता है या पिछड़ेपन, गरीबी और अभाव के बीच समृद्धि पा सकता है. इस समय मनुष्य की सभी बुनियादी समस्याएं चूंकि विश्व स्तर की हो गई हैं, इसलिए हरेक देश उन्हें दूसरे देशों, खासकर पड़ोसियों, के साथ दोस्ती और सहयोग से ही सुलझा पाएगा.’’
दक्षिण एशिया और जम्मू-कश्मीर समस्या ने भी उनका ज्यादातर ध्यान आकर्षित किया क्योंकि यह इलाका दुनिया के चंदेक बड़े ज्वलंत मुद्दों में से एक था और अब भी है. इस पर उन्होंने लगभग दो दर्जन लेख लिखे.
उनका मानना था कि दक्षिण एशिया के विकास में सबसे बड़ी रुकावट जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच विवाद है. दूसरी रुकावटें हैं, छोटे देशों के बीच भारत को लेकर आशंकाएं, भारत और हरेक सार्क सदस्य के बीच द्विपक्षीय नाराजगियां, तथा भारत की हेकड़ी वाली ‘बड़े भाई’ जैसी भूमिका, जिसमें वह पहले भी छोटे देशों पर हावी होने की कोशिश करता रहा है. जहां तक जम्मू-कश्मीर समस्या का संबंध है, उन्होंने इसका न्यायोचित, निष्पक्ष और व्यवहार्य समाधान सुझाया जो एक तरफ भारत और पाकिस्तान दोनों के अपने-अपने राष्ट्रीय हितों को जोड़ता है, और दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर राज्य के सभी जातीय समूहों की आकांक्षाअों और चिंताअों को पूरा करता है.
इसके अलावा, उन्होंने उपमहाद्वीप में अल्पसंख्यकों की समस्याअों, मानवाधिकारों, पंजाब, भारत और पाकिस्तान के परमाणु विस्फोट, स्वंयसेवी संस्थाअों की भूमिका, सतत विकास में विज्ञान-टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग की भूमिका, भारत की शुष्क भूमि और वनों का प्रबंधन वगैरह सरीखे सवालों की भी पड़ताल की. इन सभी और कई दूसरे मामलों को लेकर लेख इस किताब में शामिल हैं.

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