काश! ऐसे गांव हर सरहद पर हों
काश! ऐसे गांव हर सरहद पर हों
सरहद का नाम आते ही भारतीयों को पाकिस्तान और चीन याद आते हैं और एक सरहद यह है, जहां लोगों को परवाह ही नहीं है कि वे किस देश के नागरिक हैं. लगभग सभी लोगों का नाम दोनों देशों की जनगणना में शामिल है. दुनिया में जितने भी बॉर्डर हैं, उनमें यह सबसे यूनिक है.
भारत-नेपाल की सरहद पर बसे ‘परसा’ नाम के इस गांव के बीचोबीच से होकर निकलती है सीमा रेखा. किसी के आंगन से होकर, तो किसी के खलिहान से होकर. मजा तो तब आता है, जब एक ही खूंटे से बंधे दो बैलों में से एक भारत में खड़ा होता है तो दूसरा नेपाल में. गांव के कई लोग तो इसी कन्फ्यूजन में रहते हैं कि उनका घर भारत में है या नेपाल में. ये ऐसा बॉर्डर है, जहां न तो कोई गेट है और न ही किसी तरह के तार लगे हैं. दोनों ही तरफ रोटी-बेटी के संबंध हैं.
यूरोप में भी ज्यादातर ऐसा ही दिखता है. कोई कहीं भी आ-जा सकता है. विडंबना है कि विश्व की कॉर्पोरेट पूंजीवादी व्यवस्था के तहत विकसित देशों में तो उन्होंने सीमा चारों तरफ से खुली रखी है, लेकिन विकासशील देशों को सीमाअों में बांधने का पूरा बंदोबस्त कर रखा है. इन देशों में वे लोगों को बांटने के सारे नुस्खों पर अमल करते आ रहे हैं. नतीजा यह है कि इन देशों को खरबों रु. हथियार खरीदने पर खर्च करने पड़ते हैं और कॉर्पोरेट पूंजीपतियों का मुनाफा इसी में से निकलता है.

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