जुआन मैनुएल सांतोस को नोबेल शांति पुरस्कार
करीब 52 साल से युद्ध लड़ रहे एक देश में शांति कायम करना निश्चय ही आसान काम नहीं था. लेकिन जुआन मैनुएल सांतोस ने दिखा दिया है कि ऐसी मुश्किलों को पार किया जा सकता है. इसीलिए साल 2016 के लिए नोबेल शांति पुरस्कार उन्हें दिया गया है.
उनके प्रयासों के चलते कोलंबिया में अमन की घोषणा होने ही वाली है. और उनका सीखा सबक बाकी दुनिया के लिए एक मिसाल है. सांतोस का कहना था, ‘‘बहुत कुछ गंवाने के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि युद्ध से महज बर्बादी होती है. लिहाजा इस दुनिया में किसी तरह का युद्ध नहीं होना चाहिए.’’
छह साल पहले जब वे कोलंबिया के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे, उन्होंने ठान लिया था कि वे हर हाल में गृहयुद्ध समाप्त करवा के रहेंगे, जिसमें करीब 2.5 लाख लोग मारे गए, 69 लाख विस्थापित हुए और 45 हजार लापता हो गए. कोलंबिया सरकार और विद्रोही संगठन रिवॉल्यूशनरी आर्म्ड फोर्सेस ऑफ कोलंबिया (फार्क) के बीच चलते आ रहे खूनी संघर्ष से देश के माहौल में जहर घुल गया था.
लोगों में फार्क और उसके समर्थकों को लेकर जबर्दस्त गुस्सा था. कोलंबियाई सेना और विद्रोहियों के बीच घोर नफरत थी. जब भी सरकार और विद्रोहियों में बातचीत होती, दोनों तरफ की हठधर्मी के चलते वह सिरे नहीं चढ़ पाती. मानवीय त्रासदी की तरफ किसी का ध्यान नहीं था, दोनों पक्ष अपने को ही सही ठहराने पर अड़े रहते.
लेकिन सांतोस को संतोष नहीं था. किसी तरह वे देश को इस मानवीय त्रासदी से निकालना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने सबसे पहले सेना को अपनी बात समझाई, जो शुरू से विद्रोहियों से संघर्ष करती आ रही थी. उसी को इस संघर्ष में सबसे ज्यादा जानी और माली नुक्सान पहुंच रहा था. उनका कहना था कि युद्ध से देश को कुछ हासिल नहीं होगा. दोनों तरफ से लोग ऐसे ही मारे जाते रहेंगे.
उन्होंने विद्रोहियों को भी राजनैतिक प्रक्रिया में शामिल करने की बात कही और तर्क दिया कि वे अपने हथियारों से लोगों को मारते रहें, इससे अच्छा है कि उन्हें भी इस प्रक्रिया में शामिल होने का मौका दिया जाए. साथ ही उन्होंने विद्रोहियों से हथियार डालने की भी अपील की.
उनके प्रयास रंग लाए और गत माह फार्क और सरकार के बीच समझौता हुआ जिससे कोलंबिया में लंबे अरसे से चला आया गृहयुद्ध समाप्त हो गया. अब सिर्फ एक अन्य छोटे-से विद्रोही गुट से भी उनकी बात सिरे चढ़ने वाली है और इस तरह यह शांति प्रक्रिया मुकम्मल होने को है.
सांतोस का कहना है, ‘‘जब हम हिंसा में शामिल होते हैं, तो हमारा दयाभाव खत्म हो जाता है. हम दूसरों का दर्द महसूस करना भूल जाते हैं. इसलिए दुनिया के किसी कोने में हिंसा को मंजूरी नहीं मिलनी चाहिए.’’ काश! बाकी दुनिया भी कोलंबिया के अनुभव से कुछ सीख पाए.
https://www.nobelprize.org/…/lau…/2016/santos-interview.html
https://www.nobelprize.org/…/lau…/2016/santos-interview.html
Pix credit: Noticias de Colombia


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