एवियन इन्फ्लूएंजा (एच5एन1) यानी बर्ड फ्लू
हमारी सरकारें कैसे काम करती हैं, यह इसका सटीक उदाहरण हैं. अभी एक महीने से थोड़े दिन ही पहले यानी 14 सितंबर की बात है. उस दिन भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने जोर-शोर से घोषणा की थी कि 5 सितंबर, 2016 से भारत को एवियन इन्फ्लूएंजा (एच5एन1) यानी बर्ड फ्लू से मुक्त घोषित कर दिया गया है. यही नहीं, मंत्रालय ने इसकी सूचना दुनिया भर के 180 देशों में पशु स्वास्थ्य को सुधारने का काम कर रही अंतर-सरकारी संस्था वर्ल्ड आर्गेनाइजेशन ऑफ एनिमल हेल्थ (ओआइई) को भी दे दी.
लेकिन माह भर ही बीता था, खबर आ गई कि चिकनगुनिया और डेंगू के कहर से त्रस्त दिल्ली में बर्ड फ्लू ने दस्तक दे दी है. पक्षियों का इन्फ्लूएंजा नाम की यह बीमारी पक्षियों से ही एक-दूसरे में फैलती है और उनसे इंसानों या स्तनधारियों में होने वाला यह संक्रमण घातक होता है. 1997 में इंसानों में इसका पहला मामला पता चलने के बाद इसके संक्रमण का शिकार हो चुके 60 फीसदी लोग मर चुके हैं. यह बीमारी पाए जाने के बाद दिल्ली का चिड़ियाघर और फिर डियर पार्क भी बंद कर दिया गया है. लेकिन ओखला पक्षी विहार, यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क, नजफगढ़ ड्रेन और गाजीपुर स्थित मुर्गा मंडी में इसका खतरा बना हुआ है.
यह एक घटना बताती है कि हमारे यहां कार्पोरेट पूंजीवादी व्यवस्था में लापरवाही किस कदर कूट-कूटकर भरी हुई है. इस व्यवस्था में न सिर्फ केंद्र बल्कि राज्य सरकारें भी आती हैं. और उन पर काबिज राजनैतिक पार्टियों और उनके नेताअों को न तो प्रकृति को बचाने से मतलब है और न इंसान को. उन्हें कार्पोरेट पूंजीपतियों के हित साधने से ही फुर्सत नहीं मिलती. इसकी वजह भी है क्योंकि चुनावों में पैसा उन्हीं से मिलता है. एक तरफ राजनैतिक पार्टियां और उनके नेता तथा दूसरी तरफ कार्पोरेट पूंजीपति एक-दूसरे के हितों की रक्षा करते हैं और इस कथन पर खरे उतरते हैं कि तुम मेरी पीठ खुजाअो, मैं तुम्हारी खुजाऊंगा.



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