Monday, October 24, 2016

Collected Works of R.P. Saraf (Volume 2)

You can now open Collected Works of R.P. Saraf (Volume 2) by clicking the following link:
अब आप अंग्रेजी में आर.पी.सराफ की संकलित रचनाएं (खंड 2) को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके खोल सकते हैं:
श्री आर.पी. सराफ की संकलित रचनाअों के इस दूसरे खंड में जनवरी 1999 से लेकर अक्तूबर 2002 तक की उनकी रचनाएं हैं. यह वह दौर था जब नेचर-ह्यूमन सेंट्रिक विचार आकार ले रहे थे और दिसंबर 2002 में जन्मी नेचर-ह्यूमन सेंट्रिक पीपुल्स मूवमेंट का आधार तैयार हो रहा था.
प्रस्तुत खंड में वह लेख भी शामिल है, जिसमें यह जानने का प्रयास किया गया है कि मानव समाज में बदलाव और विकास कैसे होता है. दरअसल इसे 1947 से पहले के भारतीय इतिहास को माअोवादी नजरिये से प्रस्तुत करती श्री सराफ की 1974 में छपी मोटी किताब ‘द इंडियन सोसायटी’ का परिशिष्ट माना जा सकता है. यह लेख भारतीय इतिहास से संबंधित इस पुरानी किताब को नया नजरिया प्रदान करता है और इसमें श्री सराफ पांच ऐसी नई बातें सामने लाते हैं जो उसे दूसरे नजरियों से भिन्न करती हैं.
पहली बात, मानव समाज में बदलाव और विकास प्रकृति और मनुष्य समुदाय के दो कारकों की वजह से होता है. दूसरी बात, सामा‍जिक बदलाव और विकास एक तरफ प्रकृति तथा मानव समाज के बीच अंतरक्रिया और दूसरी तरफ समाज की विभिन्न मानवीय इकाइयों के बीच अंतरक्रिया से होता है; यह अंतरक्रिया एकता और संघर्ष की दोतरफा गति के रूप में होती है; एकता का नतीजा किसी घटनाक्रम के जुड़ने और संघर्ष का उसके टूटने में निकलता है; गति के दोनों रूप एक समग्र इकाई के दो अंग हैं, जिनमें से एक वक्त में एक प्राथमिक और दूसरा गौण भूमिका में होता है जबकि दूसरे वक्त में उनकी भूमिकाएं पलट जाती हैं. तीसरी बात, मनुष्यजाति या मनुष्य समुदाय की फितरत जैव-सामाजिक है जबकि प्रचलित सभी दृष्टिकोण मानवीय फितरत को या तो जैविक मानते हैं या सामाजिक. चौथी बात, प्रकृति की क्रमिक विकास प्रक्रिया से पैदा होने के कारण मानवजाति इस संसार में सर्वोच्च घटनाक्रम नहीं है; धरती पर दूसरे गैर मानवीय घटनाक्रमों के विकास के अपने नियम हैं; मानवजाति केवल दूसरी गैर मानवीय चीजों के साथ अंतरक्रिया करती है जिसमें वह कभी प्राथमिक और कभी गौण भूमिका में होती है. पांचवीं बात, संसार में कोई चीज परिपूर्ण नहीं होती; हर चीज लगातार बदलाव से गुजर रही है; वह देश-काल (स्थान-समय) विशेष में ही प्रासंगिक है.
प्रस्तुत खंड की अन्य खास बात यह है कि इसकी शुरुआत ही मार्क्सवाद, गांधीवाद, आरएसएस के हिंदुत्व और मंडलवाद पर श्री सराफ के अवलोकनों से होती है. ये चारों वैचारिक किस्में अंतरराष्ट्रीय नजरिये और भारत के विकास को ठीक तरीके से समझने में रुकावट बनती आई हैं. हालांकि उक्त पांचों लेख मूल रूप से सितंबर 1990 और नवंबर 1995 की अवंधि के दौरान प्रकाशित हुए थे, लेकिन सितंबर 2000 में वे कुछ संशोधित रूप में फिर उसी पत्रिका में प्रकाशित किए गए.
श्री सराफ की संकलित रचनाएं परंपरा से हटकर भी हैं. इस मायने में कि किसी व्यक्ति के संकलित लेखों की किताबें कालक्रम के अनुसार प्रकाशित होती हैं यानी पुरानी से शुरू करके नई अवधि तक छापी जाती हैं. लेकिन श्री सराफ की किताबों में इस अनुक्रम का पालन नहीं किया गया है. उनकी रचनाअों के पहले खंड में नवंबर 2002 से जून 2009 तक लेख थे तो दूसरे खंड में जनवरी 1999 से लेकर अक्तूबर 2002 तक हैं.

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