आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस है. संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा ने 1993-94 में फैसला किया था कि हर साल 3 मई को ऐसा दिवस मनाया जाए. मकसद यह जागरूकता फैलाना था कि प्रेस की आजादी की क्या अहमियत है. साथ ही हर देश की सरकार को उसके इस कर्तव्य की याद दिलाना भी था कि वह अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का सम्मान करे और उसे बनाए रखे. अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अंतर्गत आता है.
लेकिन भारत-पाक उपमहाद्वीप में प्रेस की आजादी किस तरह की है यह ‘‘रिपोर्ट्स विदऑउट बॉर्डर्स’’ की हफ्ता भर पहले जारी ताजा रिपोर्ट से जाहिर है. 180 देशों की तालिका में भारत को 136वां और पाकिस्तान को 139वां स्थान मिला है. पिछले साल भारत 133वें स्थान पर था. वैसे, प्रेस की आजादी के मामले में भारत इसलिए भी पीछे है कि यहां प्रेस (यानी अखबार-पत्रिकाअों-टीवी के मालिक) खुद गुलाम मानसिकता का शिकार है. हर दौर में जब शासक वर्ग उसे झुकने को कहता है, वह घिसटने लगता है.
गैर सरकारी संगठन ‘‘रिपोर्टर्स विदऑउट बॉर्डर्स’’ एक गैर-लाभकारी संस्था है जिसका मुख्यालय पेरिस में है. सूचना की आजादी और प्रेस की आजादी को बढ़ावा देने और उसकी रक्षा करने वाले इस संगठन को संयुक्त राष्ट्र संघ में सलाहकार का दर्जा हासिल है.
दिलचस्प बात यह है कि प्रेस की आजादी की रैंकिंग में पड़ोसी छोटे देशों की स्थिति भारत से बेहतर हैं. तालिका में भूटान का 84वां और नेपाल का 100वां नंबर है. यहां तक कि फिलस्तीन भी भारत से एक दर्जा ऊपर है. तानाशाह शासित जि़म्बाब्वे समेत अफ्रीका के बहुत से देश भी भारत के मुकाबले बेहतर स्थिति में हैं. लेकिन चीन 176वें स्थान पर और उत्तर कोरिया एकदम नीचे है. रैंकिंग में पहले चार स्थानों पर क्रमश: नॉर्वे, स्वीडन, फिनलैंड और डेनमार्क हैं.


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