Monday, October 16, 2017

विश्व का प्रथम साम्यवादी / हरिशंकर परसाई

हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई (22 अगस्त, 1924 - 10 अगस्त, 1995) पहले देसी रचनाकार थे जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन के परंपरागत दायरे से निकालकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा. सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन–मूल्यों की खिल्ली उड़ाते हुए उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञान-सम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है. खुद वामपंथ से प्रेरित होते हुए भी उन्होंने भारतीय वामपंथ पर चुटकी लेने का कोई मौका नहीं छोड़ा. पढ़िए दिवाली के बहाने ऐसा ही एक व्यंग्य, विश्व का प्रथम साम्यवादी:

जिस दिन राम रावण को परास्त करके अयोध्या आए, सारा नगर दीपों से जगमगा उठा. यह दीपावली पर्व अनंत काल तक मनाया जाएगा. पर इसी पर्व पर व्यापारी खाता -बही बदलते हैं और खाता-बही लाल कपडे में बाँधी जाती है.

प्रश्न है - राम के अयोध्या आगमन से खाता -बही बदलने का क्या संबंध? और खाता -बही लाल कपडे में ही क्यों बाँधी जाती है?

बात यह हुई कि जब राम के आने का समाचार आया तो व्यापारी वर्ग में खलबली मच गयी.
वे कहने लगे - सेठजी, अब बड़ी आफत है. शत्रुघ्न के राज में तो पोल चल गयी. पर राम मर्यादा-पुरुषोत्तम हैं. वे सेल्स टैक्स और इनकम टैक्स की चोरी बर्दाश्त नहीं करेंगे. वे अपने खाता-बही की जाँच कराएंगे और अपने को सजा होगी.

एक व्यापारी ने कहा - भैया ,तब तो अपना नंबर दो का मामला भी पकड़ लिया जाएगा.
अयोध्या के नर-नारी तो राम के स्वागत की तैयारी कर रहे थे, मगर व्यापारी वर्ग घबड़ा रहा था.
अयोध्या पहुँचने के पहले ही राम को मालूम हो गया था कि उधर बड़ी पोल है. उन्होंने हनुमान को बुलाकर कहा - सुनो पवनसुत, युद्ध तो हम जीत गए लंका में, पर अयोध्या में हमें रावण से बड़े शत्रु का सामना करना पड़ेगा - वह है, व्यापारी वर्ग का भ्रष्टाचार. बड़े-बड़े वीर व्यापारी के सामने परास्त हो जाते हैं. तुम अतुलित बल-बुद्धि निधान हो. मैं तुम्हे 'एनफोर्समेंट ब्रांच' का डायरेक्टर नियुक्त करता हूँ. तुम अयोध्या पहुँचकर व्यापारियों की खाता-बहियों की जाँच करो और झूठे हिसाब पकड़ो. सख्त से सख्त सजा दो.

इधर व्यापारियों में हडकंप मच गया. कहने लगे - अरे भैया, अब तो मरे. हनुमान जी एनफोर्समेंट ब्रांच के डायरेक्टर नियुक्त हो गए. बड़े कठोर आदमी हैं. शादी-ब्याह नहीं किया. न बाल, न बच्चे. घूस भी नहीं चलेगी.

व्यापारियों के कानूनी सलाहकार बैठकर विचार करने लगे. उन्होंने तय किया कि खाता-बही बदल देना चाहिए. सारे राज्य में 'चेंबर ऑफ़ कामर्स' की तरफ से आदेश चला गया कि ऐन दीपोत्सव पर खाता-बही बदल दिए जाएँ.

फिर भी व्यापारी वर्ग निश्चिन्त नहीं हुआ. हनुमान को धोखा देना आसान बात नहीं थी. वे अलौकिक बुद्धि संपन्न थे. उन्हें खुश कैसे किया जाए? चर्चा चल पड़ी -
• कुछ मुट्ठी गरम करने से काम नहीं चलेगा?
• वे एक पैसा नहीं लेते.
• वे न लें, पर मेम साब?
• उनकी मेम साब ही नहीं हैं. साहब ने 'मैरिज' नहीं की. जवानी लड़ाई में काट दी.
• कुछ और शौक तो होंगे? दारु और बाकी सब कुछ?
• वे बाल ब्रह्मचारी हैं. कालगर्ल को मारकर भगा देंगे. कोई नशा नहीं करते. संयमी आदमी हैं.
• तो क्या करें?
• तुम्ही बताओ, क्या करें?

किसी सयाने वकील ने सलाह दी - देखो, जो जितना बड़ा होता है वह उतना ही चापलूसी पसंद होता है. हनुमान की कोई माया नहीं है. वे सिन्दूर शरीर पर लपेटते हैं और लाल लंगोट पहनते हैं. वे सर्वहारा हैं और सर्वहारा के नेता. उन्हें खुश करना आसान है. व्यापारी खाता-बही लाल कपड़ों में बाँध कर रखें.

रातों-रात खाते बदले गए और खाता-बहियों को लाल कपडे में बाँधा गया.

अयोध्या जगमगा उठी. राम-सीता-लक्ष्मण की आरती उतारी गई. व्यापारी वर्ग ने भी खुलकर स्वागत किया. वे हनुमान को घेरे हुए उनकी जय भी बोलते रहे.

दूसरे दिन हनुमान कुछ दरोगाओं को लेकर अयोध्या के बाज़ार में निकल पड़े.

पहले व्यापारी के पास गए. बोले - खाता-बही निकालो. जाँच होगी.

व्यापारी ने लाल बस्ता निकालकर आगे रख दिया. हनुमान ने देखा - लंगोट का और बस्ते का कपड़ा एक है. खुश हुए; बोले - मेरे लंगोट के कपडे में खता-बही बाँधते हो?

व्यापारी ने कहा - हाँ, बल-बुद्धि निधान, हम आपके भक्त हैं. आपकी पूजा करते हैं. आपके निशान को अपना निशान मानते हैं.

हनुमान गद्गद हो गए.

व्यापारी ने कहा - बस्ता खोलूँ. हिसाब की जाँच कर लीजिये.

हनुमान ने कहा - रहने दो, मेरा भक्त बेईमान नहीं हो सकता.

हनुमान जहाँ भी जाते, लाल लंगोट के कपडे में बंधे खाता-बही देखते. वे बहुत खुश हुए. उन्होंने किसी हिसाब की जांच नहीं की.

रामचंद्र को रिपोर्ट दी कि अयोध्या के व्यापारी बड़े ईमानदार हैं. उनके हिसाब बिलकुल ठीक हैं.
हनुमान विश्व के प्रथम साम्यवादी थे. वे सर्वहारा के नेता थे. उन्ही का लाल रंग आज के साम्यवादियों ने लिया है.

पर सर्वहारा के नेता को सावधान रहना चाहिए कि उसके लंगोट से बुर्जुआ अपने खता-बही न बाँध लें.

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