विचारों की स्वतंत्रता या असहिष्णुता?
इसका शोर आज भले ही थम गया है, पर खुद असहिष्णुता यानी असहनशीलता पहले की तरह जारी है. समाज में यह चलन हमेशा
से रहा है. नए विचार लोगों को पचते नहीं है. खासकर समाज के जिन थोड़े से लोगों के
निहित स्वार्थ होते हैं, वे नए विचारों के दुश्मनी की हद तक विरोधी
होते हैं, लेकिन ज्यादातर लोग समझ नहीं होने के कारण
पुराने विचारों में अटके रहते हैं, चाहे वे उनके अपने अस्तित्व के विरुद्ध हों.
यहां तक कि खुद को लोकतंत्र का अलमबरदार मानने वाले अनेक संगठन भी नया विचार
आते ही बिदक जाते हैं. पुराने की प्रतिष्ठा की दुहाई देकर वे नए का विरोध करते
हैं. कुछ लोगों का मानना है कि उन्होंने जो सोच रखा है, वह कभी गलत नहीं हो सकता.
याद रखें जो देश, संगठन या व्यक्ति अपने से भिन्न मत रखने वाले दूसरे किसी देश,
संगठन या व्यक्ति के विचारों और नजरियात के प्रति सहनशील नहीं है, वह न तो अपना
भला करता है, न समाज का.
इसलिए कोई देश, संगठन या व्यक्ति सही मायनों में लोकतांत्रिक है या नहीं, इसकी
कसौटी यही है कि वह किस हद तक मतभेद या असहमति की अनुमति देता है. असहमति का
अधिकार या असहमति के प्रति सहनशीलता किसी देश, संगठन या व्यक्ति के लोकतांत्रिक होने
की बुनियादी शर्त है.
मशहूर अंग्रेज कवि रॉबर्ट फ्रॉस्ट ने शायद ऐसी ही स्थिति के लिए कभी कहा था, ‘‘शिक्षा वह गुण है जो आपको अपना आत्म विश्वास अथवा आपा खोये
बिना किसी भी बात को सुनने, सहने की क्षमता प्रदान करता है.’’ इसी बात को फ्रॉस्ट से कोई 2,200 साल पहले पैदा हुए अरस्तु ने दूसरे तरीके से रखा था. उनका कहना था, ‘‘शिक्षित होने का लक्षण यह है कि आदमी किसी विचार को स्वीकार
किए बिना उस पर विचार करता है.’’
फ्रॉस्ट (1874-1963) रहने वाले तो
अमेरिका के थे, लेकिन उनकी ज्यादातर कृतियां पहले इंग्लैंड
में ही प्रकाशित हुईं. उनकी ख्याति ग्रामीण जीवन का वास्तविक चित्रण करने के चलते
हुई. उधर, अरस्तु (384-322 ई.पू.) यूनानी दार्शनिक थे और वैज्ञानिक भी थे. तर्कशास्त्र पर उस जमाने में
उन्होंने बहुत काम कया और भारतीय दर्शन की तरह पश्चिमी विचार शैली में भी माने गए
वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी और आकाश से गठित पंचतत्व में से
पांचवें तत्व आकाश की खोज उन्हीं की है.
इसलिए अपना मानना है कि हर आदमी अपने अंदर दो बुनियादी गुण जरूर पैदा करे. एक
तो उसे तर्कशील और दूसरे जिज्ञासु यानी खोजी प्रवृत्ति का होना चाहिए. वैसे भी
तर्कशील व्यक्ति अमूमन जिज्ञासु होता है. ऐसा व्यक्ति प्रकृति
और मनुष्यजाति के बारे में नित नए तथ्यों की खोज में जुटता है. नए तथ्यों की मदद से
वह प्रकृति और मनुष्य से जुडे किसी नए घटनाक्रम का अध्ययन करता और उसे समझ सकता है.
इसलिए
उन लोगों के लिए जो सीखने की ख्वाहिश रखते हैं, खोज करना न सिर्फ लाजिमी है बल्कि
उनकी एक जरूरत भी है. यह ज्ञान को बढ़ाने का साधन ही नहीं बल्कि विभिन्न मसलों को समझने
का एक माध्यम और झूठ को नंगा करने तथा सच को सामने लाने का एक रास्ता भी है. खोजकर्ता
हर चरण पर यह आकलन करता है कि उस स्थिति में क्या ज्ञात है. वह आगे की समस्याओं की
निशानदेही करता है और उन्हें उचित तथा कारगर तरीके से सुलटाने के तरीके विकसित करता
है.
Pix Credit: Indian Express


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