व्हाट्सऐप पर एक सम्मानित मित्र ने एक पोस्ट में कुछ ऐसी जानकारी दी जो सन् 2015 के तथ्यों पर आधारित थी. आज की तारीख में उससे संबंधित तथ्य बदल गए हैं. मैंने उन्हें कहा कि “भाई, आप पुरानी खबर को नए लिबास में क्यों पेश कर रहे हैं? आपने जो हाइपर लिंक भेजा है, वह 11 सितंबर 2015 का है. उसके बाद कई डेवलेपमेंट्स हो चुकी हैं. अति उत्साह में ध्यान रखें कि तथ्यों से खिलवाड़ न हो.”
समीक्षा के लिए मेरा धन्यवाद करते हुए उनका कहना था, “व्हाट्सऐप संदेश प्रणाली के बारे में मेरी समझ है कि तथ्यों का सत्यापन करने की जिम्मेदारी पाठक या दर्शक की है.”
यह बात मुझे अजीब-सी लगी. पाठक या दर्शक तथ्यों को सत्यापित करने के लिए कैसे जिम्मेदार हो गया? कोई जागरूक पाठक या दर्शक खुद अपनी पहल पर तथ्यों का सत्यापन भले ही कर ले, लेकिन तथ्यों के सच या झूठ होने का जिम्मेदार मूल रूप से तो उन्हें प्रस्तुत करने वाला लेखक या उनसे सहमति जताकर उनके लेखन को आगे भेजने या फॉर्वर्ड करने वाला व्यक्ति ही होता है.
किसी देश में यह प्रचलन नहीं है कि उसका कोई नागरिक अपनी मर्जी से तथ्य गढ़ ले और बेचारा पाठक उनका सत्यापन करता फिरे. आज की दुनिया में कोई बच्चा भी जानता है कि तथ्य और मान्यता में फर्क होता है, जिसका पालन सभी को करना चाहिए. तथ्य तो तथ्य है, वह बदलता नहीं हैं. हां, उसके बारे में हमारे मत या राय भिन्न हो सकती है.

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