आभासी दुनिया में और असली जिंदगी में भी हमारे मित्र Rajender Sharma ने लिखा है: "क्या भारत सिर्फ नेहरू-गांधी खानदान की जागीर है कि देश में हजारों स्मारक, अस्पताल, सड़कें तथा योजनाएं उनके लोगों के नाम पर हैं."
सही बात है. नेहरू-गांधी खानदान ने सचमुच भारत को अपनी जागीर बना लिया था. यह किसी की भी जागीर नहीं बनना चाहिए. मेरी समझ से योजनाअों का नाम तो किसी भी नेता के नाम पर नहीं रखा जाना चाहिए – न पुराने और न ही नए. व्यक्ति आते-जाते रहते हैं, देश अपनी जगह कायम रहता है.
अफसोस की बात है कि जो कोई शासक आता है, वह अपने नेता के नाम पर यह सब कुछ करने लगता है. जनता पार्टी, जनता दल और उसके बाद कई सरकारों ने यही सिलसिला जारी रखा.
भाजपा की वर्तमान सरकार भी इसका अपवाद नहीं है. प्रधानमंत्री ने कई योजनाअों का नामकरण नेताअों के नाम पर ही किया है. व्यक्तियों के नाम पर रखी गई कुछ योजनाअों की बानगी: अटल पेंशन योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना, पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते योजना, अटल मिशन फॉर रेजुवेनेशन ऐंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन, श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन.
21वीं सदी के तीसरे दशक में जाने की तैयारी कर रही दुनिया में किसी नेता के नाम पर योजनाअों का नाम रखने का यह सिलसिला अब रुकना चाहिए.

0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home