मित्र भुवन गिरी ने अपनी टिप्पणी में बहुत-सी जानकारी दी है. बेहतर है, हम किसी साथी पर व्यक्तिगत टीका-टिप्पणी से बचें और जो मुद्दे उठाए गए हैं, उन्हीं पर केंद्रित रहकर चर्चा को आगे बढ़ाएं. मेरी समझ से उन्होंने मुख्य रूप से नीचे लिखे मुद्दे उठाए हैं:
(1) हमारे सिद्धांत और व्यवहार में फर्क बढ़ रहा है.
(2) संगठन कुछ लोगों के इर्दगिर्द सिकुड़, सिमटकर रह गया है.
(3) संगठन में फूटपरस्त राजनीति हावी होती जा रही है.
(4) सिद्धांत नाम के साथ जुड़ना चाहिए या नहीं.
(5) अकेले मेहनत करके संगठन नहीं बनता. टीम होती है तो शक्ति ओर विचार की प्रचुरता भी होती है.
(6) आज की सबसे बड़ी चुनौती, संगठन को सामाजिक स्वरूप कैसे दिलवाएं.
(7) ईगो को हम मैनेज नहीं कर पा रहे हैं.

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