दुनिया की 100 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं
दुनिया में जो 100 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं, उनमें 69 बहुराष्ट्रीय निगम हैं और बाकी 31 देशों की अर्थव्यवस्थाएं हैं. सरकारों की मिलीभगत से उन्होंने ऐसी वैधानिक व्यवस्था बना रखी है, जो निरंकुश आर्थिक गतिविधि को जन हित से ऊपर रखती है, कॉर्पोरेट कल्याण का बचाव करके समाज कल्याण पर चोट करती है और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को सट्टेबाजी अथवा जोखिम वाले विश्वव्यापी वित्तीय समूह के मातहत रखती है.
दुनिया भर में सामाजिक क्षेत्र में काम कर रहे लंदन स्थित संगठन ग्लोबल जस्टिस नाउ के मुताबिक, इनमें वालमार्ट, एप्पल और शेल समेत सबसे बड़े 10 बहुराष्ट्रीय निगम दुनिया में अधिकांश देशों की कुल मिलाकर कमाई से भी ज्यादा पैसा बना रहे हैं. इस संगठन का आरोप है कि लगभग हर देश की सरकार ने इन बहुराष्ट्रीय निगमों के दबाव में आकर उनके अनुकूल कर ढांचा बना रखा है और इस तरह वे अपने नागरिकों की जरूरतों की अनदेखी करती हैं.
100 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की सूची पर नजर डालने से ऐसे पैटर्न का पता चलता है जिसमें कोई सर्वोच्च 12 जगहों पर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाएं हैं और बाकी लगभग हर जगह बहुराष्ट्रीय निगमों का बोलबाला है. इनमें शीर्ष स्थान पर अमेरिका (राजस्व 3,251 अरब डॉलर) है और उसके बाद क्रम में चीन (2,426 अरब डॉलर), जर्मनी (1,515 अरब डॉलर), जापान (1,439 अरब डॉलर), फ्रांस (1,253 अरब डॉलर), इंग्लैंड (1,101 अरब डॉलर), इटली (876 अरब डॉलर), ब्राजील (631 अरब डॉलर) और कनाडा (535 अरब डॉलर) हैं.
इसके बाद 10वें क्रम पर वालमार्ट (482 अरब डॉलर की कमाई के साथ) है. बहुराष्ट्रीय निगमों के क्रम में अगले तीन स्थानों पर चीन की कंपनियां -- 14वें स्थान पर एकाधिकार प्राप्त बिजली कंपनी स्टेट ग्रिड (330 अरब डॉलर), 15वें पर चाइना नेशनल पेट्रोलियम (299 अरब डॉलर) और 16वें पर तेल कंपनी साइनोपेक (294 अरब डॉलर) -- हैं. आगे, 18वें स्थान पर रॉयल डच शेल (272 अरब डॉलर), 21वें पर एक्सॉन मोबिल (246 अरब डॉलर), 22वें पर फोक्सवैगन (237 अरब डॉलर), 23वें पर टोयोटा मोटर (237 अरब डॉलर) और 25वें पर एप्पल (234 अरब डॉलर) हैं. सूची में 236 अरब डॉलर के राजस्व के साथ भारत की अर्थव्यवस्था का क्रम 24वां है.
दुनिया भर में सामाजिक क्षेत्र में काम कर रहे लंदन स्थित संगठन ग्लोबल जस्टिस नाउ के मुताबिक, इनमें वालमार्ट, एप्पल और शेल समेत सबसे बड़े 10 बहुराष्ट्रीय निगम दुनिया में अधिकांश देशों की कुल मिलाकर कमाई से भी ज्यादा पैसा बना रहे हैं. इस संगठन का आरोप है कि लगभग हर देश की सरकार ने इन बहुराष्ट्रीय निगमों के दबाव में आकर उनके अनुकूल कर ढांचा बना रखा है और इस तरह वे अपने नागरिकों की जरूरतों की अनदेखी करती हैं.
100 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की सूची पर नजर डालने से ऐसे पैटर्न का पता चलता है जिसमें कोई सर्वोच्च 12 जगहों पर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाएं हैं और बाकी लगभग हर जगह बहुराष्ट्रीय निगमों का बोलबाला है. इनमें शीर्ष स्थान पर अमेरिका (राजस्व 3,251 अरब डॉलर) है और उसके बाद क्रम में चीन (2,426 अरब डॉलर), जर्मनी (1,515 अरब डॉलर), जापान (1,439 अरब डॉलर), फ्रांस (1,253 अरब डॉलर), इंग्लैंड (1,101 अरब डॉलर), इटली (876 अरब डॉलर), ब्राजील (631 अरब डॉलर) और कनाडा (535 अरब डॉलर) हैं.
इसके बाद 10वें क्रम पर वालमार्ट (482 अरब डॉलर की कमाई के साथ) है. बहुराष्ट्रीय निगमों के क्रम में अगले तीन स्थानों पर चीन की कंपनियां -- 14वें स्थान पर एकाधिकार प्राप्त बिजली कंपनी स्टेट ग्रिड (330 अरब डॉलर), 15वें पर चाइना नेशनल पेट्रोलियम (299 अरब डॉलर) और 16वें पर तेल कंपनी साइनोपेक (294 अरब डॉलर) -- हैं. आगे, 18वें स्थान पर रॉयल डच शेल (272 अरब डॉलर), 21वें पर एक्सॉन मोबिल (246 अरब डॉलर), 22वें पर फोक्सवैगन (237 अरब डॉलर), 23वें पर टोयोटा मोटर (237 अरब डॉलर) और 25वें पर एप्पल (234 अरब डॉलर) हैं. सूची में 236 अरब डॉलर के राजस्व के साथ भारत की अर्थव्यवस्था का क्रम 24वां है.


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