जलवायु परिवर्तन और भारत के किसानों की आत्महत्याओं में कोई संबंध है?
लंदन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरनमेंट ऐंड डेवलपमेंट (आइआइईडी) ने इसी माह प्रकाशित अपने एक शोधपत्र में किसानों की आत्महत्याओं को लेकर विश्लेषण किया है कि ये उन वर्षों में अधिक होती रहती हैं, जिनमें वर्षा कम होती है. इससे पता लगता है कि जलवायु परिवर्तन और भारत के कृषि मजदूरों की आत्महत्याओं में कोई निश्चित संबंध है.
जलवायु परिवर्तन ने भारत में बार-बार सूखा पड़ने की घटनाओं में तो वृद्धि की ही है, उसकी लपेट में आने वाले क्षेत्रफल में भी इजाफा किया है. संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मेलन के अनुसार, 2020-2022 में देश का करीब दो-तिहाई हिस्सा सूखाग्रस्त था. महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य तो इससे बुरी तरह प्रभावित थे और उनकी क्रमशः 62 फीसदी, 44 फीसदी और 76 फीसदी जमीन सूखे की लपेट में आई थी. और उन्हीं में किसानों की आत्महत्याओं की दर ज्यादा थी.
आइआइईडी शोधकर्त्ताओं द्वारा सबसे अधिक आत्महत्या वाले राज्यों -- छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तेलंगाना -- के लिए 2014-15 से 2020-21 के बीच जुटाए आंकड़ों से संकेत मिलता है कि आत्महत्या की दर बारिश की कमी वाले वर्षों में ज्यादा होती रही है. मसलन, जिस साल बारिश सामान्य से 5 फीसदी कम रही, आत्महत्या करने वाले किसानों की औसत संख्या 810 थी. "और बारिश की 25 फीसदी कमी के लिए हमारे रिग्रेशन मॉडलिंग के पूर्वानुमानित मूल्यों पर आधारित होकर देखें तो उस साल आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 1,188 होगी."
आत्महत्या की सबसे अधिक दरों वाले राज्यों में किसान ज्यादातर कपास की खेती करते हैं, जिसके लिए बीजों और कीटनाशकों में खासे निवेश की जरूरत होती है. इसके चलते किसान कई स्रोतों से कर्ज लेने को मजबूर होते हैं. अगर सूखे या अनियमित बारिश से कपास की फसल खराब हो जाती है तो किसान अपना कर्ज नहीं उतार पाते. नकदी फसलों की इसी प्रमुखता के चलते कृषि संकट बढ़ा है. इससे छोटे किसानों में आत्महत्या का जोखिम बढ़ गया है.
भारत में किसानों को आत्महत्या का सबसे अधिक जोखिम है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2021 में देश में अंकित कुल आत्महत्याओं में किसानों की आत्महत्या का प्रतिशत 15.08 था. अनुमान है कि दुनिया की 75.5 फीसदी आत्महत्याएं निम्न और मध्य आय वाले देशों में होती हैं, लेकिन अकेले भारत में दुनिया के ऐसे 26.6 फीसदी मामले होते हैं.
शोधपत्र में स्पष्ट कहा गया है, "जलवायु परिवर्तन खेती को किसानों के लिए बेहद जोखिम भरा, संभावित खतरों से भरपूर और घाटे वाला उद्यम बना रहा है, जिसमें आत्महत्या की आशंका बढ़ गई है." अंत में निष्कर्ष है कि यह तुरंत ध्यान देने योग्य समस्या है, क्योंकि भारत में जब से रिकॉर्ड रखा जाना शुरू हुआ है, उसके बाद आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले 2022 में हुए हैं.

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