हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र में पिघलेंगे ग्लेशियर?
चित्र साभार: https://www.mountainproject.com
जलवायु संकट के चलते दुनिया में तापमान जिस तेजी से बढ़ता जा रहा है, उससे आशंका पैदा हो गई है कि यदि ग्लोबल वार्मिंग में लगातार वृद्धि होती रही तो इस सदी का अंत आते-आते हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र में जो ग्लेशियर पाए जाते हैं, उनमें 80 फीसदी बर्फ पिघल जाएगी.
लगभग 42 लाख वर्ग किलोमीटर के रकबे में फैले इस क्षेत्र में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, किर्गिज़स्तान, मंगोलिया, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान, ताज़िकिस्तान, उज़्बेकिस्तान वगैरह जैसे देश आते हैं. लंबाई में करीब 3,500 किलोमीटर फैली इनकी एवेरेस्ट और के2 समेत 7,000 फुट से अधिक ऊंची कई चोटियों पर ध्रुवीय क्षेत्रों को छोड़कर बर्फ की सबसे ज्यादा मात्रा है.
लेकिन इन ग्लेशियरों के आकार का घटना उनकी स्थिति और तापमान में होती वृद्धि पर निर्भर करता है. जैसे अनुमान लगाया गया है कि सदी के अंत तक तापमान में तीन डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि हो सकती है, तो उस स्थिति में हिमालय के पूर्वी क्षेत्र के ग्लेशियरों की, जिनमें नेपाल और भूटान के हिस्से आते हैं, 75 फीसदी बर्फ पिघल सकती है. लेकिन अगर तापमान में वृद्धि चार डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचती है तो बर्फ 80 फीसदी तक पिघल जाएगी.
उपरोक्त आंकड़े नेपाल के काठमांडू में स्थित आठ देशों के अंतर-सरकारी संगठन इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आइसीआइएमओडी) ने जारी किए हैं. संस्था की “वॉटर, आइस, सोसायटी, ऐंड इकोसिस्टम्स इन द हिंदुकुश हिमालय” (https://lib.icimod.org/record/36322) शीर्षक से रिपोर्ट के अनुसार, "अगर ग्लोबल वार्मिंग दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रहती है, तो सन 2100 तक इस क्षेत्र में ग्लेशियर 30-50 प्रतिशत कम हो जाएंगे और अगर ग्लोबल वार्मिंग इससे ऊपर गई तो ग्लेशियरों के पिघलने की मात्रा 55 से 80 प्रतिशत तक होगी.’’
रिपोर्ट के अनुसार, ग्लेशियर पिघलने से अत्यंत संवेदनशील इस क्षेत्र में पहले तो बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा, और उसके बाद, जल संकट गहरा हो जाएगा. भारत पर इसका जानलेवा प्रभाव होगा ही, दक्षिण एशिया के उपरोक्त देश भी इसकी लपेट में आ जाएंगे. बताया गया है कि हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियर 2000-2009 की अवधि में जहां 17 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की दर से पिघले थे, वहीं 2010-2019 की अवधि में यह दर बढ़कर 28 सेंटीमीटर प्रति वर्ष हो गई है.
हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र के पहाड़ों में मौजूद बर्फ एशिया में करीब 200 करोड़ उन लोगों की ताजा पानी की जरूरतें पूरा करती है, जो एशिया के 16 देशों में बसे हैं. इनमें भारत भी है. इनमें 24 करोड़ लोग पहाड़ी क्षेत्रों में और 165 करोड़ निचले इलाकों में रहते हैं. लेकिन अपनी पानी की जरूरतों के लिए वे भी उन नदियों पर निर्भर हैं जिनमें पानी इस क्षेत्र के ग्लेशियरों से ही आता है. इस क्षेत्र की बर्फ 12 नदियों को जीवन देती है, जिनमें गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, येलो रिवर, मेकांग, यांग्त्से और इरावदी शामिल हैं.
घटती बर्फ की वजह से न केवल लोगों के जीवन पर असर पड़ेगा, उनकी जीविका भी खतरे में पड़ जाएगी. इन पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग पहले ही अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं और प्रकृति की मार झेलने को मजबूर हैं. ऐसे में इन बदलावों से उनके लिए संकट और बढ़ जाएगा. न सिर्फ उनकी फसलें प्रभावित होंगी, उन्हें चारे की कमी, मवेशियों की मृत्यु वगैरह जैसी मुश्किलें भी झेलनी पड़ेंगी. इसकी वजह से जो आपदाएं आएंगी वो उनके जीवन और संपत्ति को भारी नुक्सान पहुंचा सकती हैं. ऐसे में उन लोगों को न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक क्षति भी उठानी पड़ेगी. पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन बढ़ जाएगा.
रिपोर्ट के अनुसार, इस क्षेत्र की जैव-विविधता पर भी गहरा असर पड़ेगा. यह क्षेत्र पहले ही बहुत ज्यादा संवेदनशील है ऊपर से यह बदलाव कहीं ज्यादा घातक प्रभाव डालेगा. जलवायु संकट का प्रभाव यहां पाई जाने वाली करीब-करीब सभी प्रजातियों पर पड़ेगा. वैसे, यह क्षेत्र पहले ही जैव-विविधता और प्रजातियों में कमी का सामना कर रहा है, जिनमें से कई बड़ी तेजी से विलुप्त होने की कगार पर हैं.


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