जून में भी सूखा स्थायी समस्या बनी
गत कुछ बरसों से भारत में किसानों के लिए यह सिरदर्द बन गया है. जून माह में भी सूखा रहना, धीरे-धीरे उनकी स्थायी समस्या बनती जा रही है. आबोहवा में जो बदलाव हुआ है, दुनिया के पैमाने पर जो गरमी बढ़ती जा रही है, उसका यह मात्र एक नमूना है. अभी कल ही भारत सरकार के कृषि मंत्रालय की ओर से बुवाई के जारी किए आंकड़ों से यही दिखता है.
चावल, दालों, तेल के बीजों और मोटे अनाज के रूप में खरीफ की चार प्रमुख फसलों में से पहली
तीन श्रेणियों में पिछले साल की तुलना में बुवाई कम हो रही लगती है. धान का रकबा
पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में इस साल 28.3 प्रतिशत कम है. ताजा सरकारी आंकड़ों के अनुसार,
2022 में 4.91 लाख हेक्टेयर के मुकाबले कल 9 जून तक सिर्फ 3.52 लाख हेक्टेयर में धान बोया गया है.
दालों की बुवाई भी पिछले
साल के मुकाबले करीब 38 प्रतिशत कम बताई
गई है और उसके तहत रकबा 1.75 लाख हेक्टेयर से
घटकर इस साल 1.09 लाख हेक्टेयर
दर्ज किया गया है. उड़द, अरहर और मूंग
सरीखी प्रमुख दालों का रुझान भी कमी की ओर है. तेल के बीजों में देखें तो मूंगफली,
सूरजमुखी, सोयाबीन और तिल जैसी फसलों का रकबा भी पिछले साल की तुलना
में घटा बताया गया है. कुल मिलाकर, तिलहन फसलों के
रकबे में 32.78 प्रतिशत कमी
दर्ज की गई.
कपास की फसल के आंकड़े तो
नहीं मिले, लेकिन मोटे अनाजों का
रकबा 80.83 प्रतिशत बढ़ा है. इसकी
वजह ज्यादातर बाजरा है, जिसमें दूसरे
अनाजों की बुवाई के मुकाबले सबसे अधिक वृद्धि देखी गई.
भारत में ज्यादातर किसान
खेती के लिए बारिश के पानी पर निर्भर हैं. ऐसे 61 प्रतिशत किसानों के लिए खरीफ मौसम में जून और जुलाई दो
सबसे अहम महीने हैं. लेकिन जून माह का लगातार सूखा रहना उनके लिए परेशानी का सबब
बनता जा रहा है. मानसून से पहले की बारिश न होने से उस समय जमीन में नमी का स्तर
अनुकूल न हो तो जुताई और बुवाई में देरी हो जाती है. इससे अनाज की पैदावार खराब
होने का अंदेशा रहता है.
अमूमन जून से सितंबर माह
तक रहने वाला दक्षिण-पश्चिम मानसून इस साल 8 जून को देरी से शुरू हुआ. हर साल वह 1 जून तक अवश्य
केरल तट से आ लगता है और 15 जून तक पूरे देश
में छा जाता है. इसके अलावा भी संभावना है कि इस बार कुछ चक्रवात और तूफान मानसून
की प्रगति को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे और देश के कई हिस्सों में बारिश कमजोर होने की संभावना है.
दरअसल, पिछले 12 बरसों के दौरान नौ बरस ऐसे गुजरे हैं जिनमें जून के महीने
में सामान्य से ज्यादा सूखा रहा है. देश के 36 मौसम उपखंडों में से 10 या उससे अधिक में ऐसी ही स्थिति देखी गई है.
इसलिए आबोहवा में हुए बदलाव की प्रक्रिया को समझना, दुनिया के पैमाने पर बढ़ती जा रही गरमी की प्रक्रिया पर नजर रखना और उसे रोकने के लिए दुनिया भर में उठ रहे आंदोलन से जुड़ना आज जरूरी हो गया है.

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