सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद जज राजनैतिक नियुक्ति स्वीकार न करें
मुंबई के वकीलों की संस्था बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन का मानना है कि सेवानिवृत्त होने के तुरंत बाद जजों को कोई राजनैतिक नियुक्ति स्वीकार नहीं करनी चाहिए. इसलिए एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट या हाइकोर्ट के किसी भी जज का सेवानिवृत्ति के बाद दो साल का 'कूलिंग पीरियड' (विराम काल) तय किया जाए. इस काल के बाद ही वे सरकारों के आग्रह पर राज्यपाल, सांसद, किसी ट्रिब्यूनल अथवा आयोग का सदस्य वगैरह सरीखे राजनैतिक पद पर बिराजमान हों.
वकीलों का कहना है कि ऐसा न होने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता के बारे में प्रतिकूल धारणा बन रही है. याचिका में शीर्ष अदालत से यह अनुरोध भी किया गया है कि वह इस मामले में कोई फैसला होने तक सेवानिवृत्त जजों से राजनैतिक नियुक्तियां स्वीकार न करने के लिए कहे. जाहिर है, वकीलों की इस मांग में दम है. लेकिन दो साल के कूलिंग पीरियड के बजाय यह अवधि किसी निर्वाचित सरकार की तरह पांच साल रखना ज्यादा तर्कसंगत होगा.वैसे, उक्त राजनैतिक पदों पर नियुक्त करने में सक्षम नेताओं को ही इस बारे में कुछ सोचना चाहिए था, लेकिन उन्हें शायद इस बात की परवाह ही नहीं लगती कि आम जनता क्या सोचेगी. वे कांग्रेस के जमाने में भी ऐसी नियुक्तियां करते आए हैं और अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में भी किए जा रहे हैं.
याचिका में सबसे ताजा मामला आंध्र प्रदेश के वर्तमान राज्यपाल सैयद अब्दुल नजीर का गिनाया गया है, जो इस साल 4 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पद से रिटायर हुए थे और ठीक सवा माह बाद 12 फरवरी को राज्यपाल बना दिए गए. इसके पहले उदाहरण के रूप में जस्टिस रंजन गोगोई का उल्लेख है जिन्हें शीर्ष न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्त हुए अभी चार माह ही हुए थे कि राज्यसभा के लिए नामित होकर उन्होंने 19 मार्च 2020 को संसद के उच्च सदन में सदस्यता की शपथ ग्रहण कर ली. इसी तरह, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्त हुए चार माह भी नहीं हुए थे कि 5 सितंबर 2014 को पी. सदाशिवम केरल के राज्यपाल के रूप में नियुक्त कर दिए गए थे.
दरअसल, आजादी के बाद से ही अनेक सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को राजनैतिक पदों पर नियुक्त किया गया है. बताते हैं कि 1952 में जस्टिस फ़ज़ल अली को उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत्त होने के तुरंत बाद ओडीशा का राज्यपाल बनाया गया था. 1958 में बॉम्बे हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एम.सी. छागला ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निमंत्रण पर अमेरिका में भारत का राजदूत बनने के लिए इस्तीफा दे दिया था. अप्रैल 1967 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश कोका सुब्बा राव ने भी राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए पद छोड़ दिया था.


0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home