Wednesday, May 24, 2023

जैव विविधता घटने से भाषायी और सांस्कृतिक विविधता भी घट रही

शोधकर्ताओं ने जैव विविधता और भाषायी विविधता के बीच गहरा संबंध पाया है. जैसे-जैसे दुनिया में जैव विविधता कम होती जा रही है, वैसे-वैसे उसमें भाषायी और सांस्कृतिक विविधता भी घटती जा रही है. विभिन्न प्रकार के पशुओं और पेड़-पौधों के बड़े पैमाने पर विलुप्त होते जाने के साथ-साथ भाषाएं भी चिंताजनक दर से मर रही हैं.

जीवविज्ञानियों का आकलन है कि प्रजातियों के विलुप्त होने की सालाना दर पहले के मुकाबले 1,000 गुना या उससे भी अधिक हो सकती है. उधर, कुछ भाषाविद् अनुमान लगा रहे हैं कि दुनिया की 50-90 प्रतिशत भाषाएं इस सदी के अंत तक समाप्त हो जाएंगी.

यह कोई संयोग नहीं है. अध्ययनों से पता चलता है कि दुनिया में जैव विविधता के मामले में अति सक्रिय क्षेत्र -- न्यू गिनी के जंगली इलाकों से लेकर पश्चिमी अफ्रीका में गिनी के जंगलों तक -- आश्चर्यजनक रूप से ज्यादातर ऐसे ही क्षेत्र हैं, जहां अत्यधिक भाषायी और सांस्कृतिक विविधता भी पाई जाती है. यह दोनों प्रक्रियाएं किसी न किसी तरह साथ-साथ चलती हैं.

दरअसल, दुनिया में अभी जीवित 6,000 से अधिक भाषाओं में से कोई 5,000 भाषाएं उन क्षेत्रों में हैं, जिनमें अत्यधिक जैव विविधता है. इनमें ज्यादातर भाषाओं को बोलने वाले कम ही लोग हैं. और किसी भाषा को बोलने वाले जितने कम लोग होते हैं, उसके विलुप्त होने की उतनी ही ज्यादा संभावना होती है.

जैव विविधता के मामले में अति सक्रिय क्षेत्रों की 3,202 भाषाओं में से 1,553 भाषाओं को 10,000 या उससे कम लोग बोलते हैं. कोई 544 भाषाएं वे हैं जिनके बोलने वाले 1,000 या उससे कम हैं. अत्यधिक जैव विविधता वाले जंगली इलाकों की कुल 1,622 भाषाओं में से 1,251 भाषाओं को 10,000 या उससे कम लोग बोलते हैं, और 675 भाषाएं बोलने वाले 1,000 या उससे कम लोग हैं.

इस मामले में जरूरत है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं तत्काल कुछ करें. 




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