Thursday, June 1, 2023

पृथ्वी की सुरक्षा "खतरे" में

पृथ्वी की सुरक्षा के लिए वैज्ञानिकों के निर्धारित आठ नए मानकों में से सात का उल्लंघन करके मनुष्य ने अपने कृत्यों से उसे "खतरे" में डाल दिया है. यह बात अर्थ कमीशन नामक वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल ने अपने ताजा अध्ययन में कही है, जो लंदन की विज्ञान पत्रिका नेचर के ताजा अंक में छपी है.

इस अध्ययन में मौसम, वायु प्रदूषण, उर्वरकों के अति इस्तेमाल से पानी में फॉस्फोरस एवं नाइट्रोजन की मिलावट, भूजल आपूर्ति, धरातल पर ताजा पानी, प्राकृतिक वातावरण, और कुल मिलाकर प्राकृतिक एवं मानव निर्मित वातावरण को लेकर समीक्षा की गई है. इसमें सिर्फ वायु प्रदूषण के मामले में ही थोड़ी राहत है, जो दुनिया में अभी खतरे के स्तर से कुछ पीछे है. बाकी सातों मानकों में संकट की स्थिति के चलते जीवन-आधार प्रणालियों की स्थिरता खतरे में पड़ गई है और सामाजिक नाबराबरी बढ़ गई है.

एम्स्टर्डम विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान की प्रोफेसर और अर्थ कमीशन की सह-अध्यक्ष जॉयइता गुप्ता ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य परीक्षण की तरह यदि धरती का भी सालाना चेकअप करवाया जाए तो "हमारा डॉक्टर कहेगा कि धरती अभी सचमुच बहुत बीमार है तथा इसके बहुत-से विभिन्न अंग अथवा प्रणालियां रोगग्रस्त हैं, और यह बीमारी धरती पर रह रहे लोगों की जिंदगी को भी प्रभावित कर रही है."

वैज्ञानिकों का मानना है की यह कोई अंतिम रोग निदान नहीं है; अगर हम कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस के इस्तेमाल को लेकर बदलाव कर लें और जमीन-पानी का सही इस्तेमाल करना सीख लें तो पृथ्वी के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है. लेकिन जर्मनी स्थित पाट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के निदेशक जोहान रॉकस्टॉर्म का कहना था कि "इन सभी मामलों में मूल रूप से हम गलत दिशा में जा रहे हैं,"




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