लौट आया है अल नीनो
मौसम के लिए एक और बुरी खबर की आशंका सच साबित हुई है. जलवायु वैज्ञानिकों के हवाले से बताया जा रहा है कि विभिन्न जगहों पर अलग-अलग प्रभाव पैदा करने वाला कथित अल नीनो लौट आया है. अमेरिका के नेशनल ओशिएनिक ऐंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने इस खबर की पुष्टि की है. इससे मूसलाधार बारिश का जोखिम बढ़ने के साथ ही दुनिया के कुछ खास क्षेत्रों में सूखे की आशंका बढ़ सकती है. यही नहीं, अल नीनो के कारण ऊंचे तापमान के नए रिकॉर्ड बन सकते हैं, खासकर उन इलाकों में जहां तापमान पहले ही औसत से ज्यादा है.
अल नीनो भारत के लिए इसलिए खराब माना जा रहा है कि मानसून की एकदम शुरुआत में आ जाने से इससे बारिश बुरी तरह प्रभावित हो सकती है और बरसात का समूचा मौसम (जून-सितंबर) इसकी भेंट चढ़ सकता है. इससे भारत समेत समूचे दक्षिण-पूर्वी एशिया में धान की पैदावार बुरी तरह प्रभावित हो सकती है. मक्की और सोयाबीन की उत्पादकता पर भी देश में असर पड़ सकता है. अतीत में भी अल नीनो वाले बरसों के दौरान देश में औसत से कम बारिश हुई थी. इसका नतीजा भयानक सूखे में निकलने की वजह से फसलें तबाह हो गई थीं और सरकार को कुछ अनाजों के निर्यात को सीमित करना पड़ा था.
दरअसल, स्पेनी भाषा के अल नीनो शब्द का मतलब होता है, लिटिल ब्वॉय यानी छोटा लड़का. यह जलवायु प्रणाली का ही एक हिस्सा है और मौसम पर बहुत गहरा असर डालता है. इसके आने से दुनिया भर के मौसम पर असर दिखता है और बारिश, ठंड, गरमी, सबमें अंतर नजर आता है. राहत की बात यह है कि ये दोनों ही हालात हर साल नहीं, बल्कि 3 से 7 साल में दिखते हैं. मुख्य रूप से इसकी शुरुआत पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में असामान्य तौर पर गर्म पानी के कारण होती है. माना जाता है कि भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के पास पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली हवाएं कमजोर पड़ती हैं और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में रहने वाली गर्म सतह वाला पानी भूमध्य रेखा के साथ पूर्व की ओर बढ़ने लगता है.
समुद्र की सतह का तापमान बढ़ने से समुद्री जीव-जंतुओं पर इसका बुरा असर पड़ता है. मछलियां और पानी में रहने वाले दूसरे जीव औसत आयु पूरी करने से पहले ही मरने लगते हैं. इसके असर से बारिश वाले क्षेत्रों में बदलाव आते हैं, यानी कम बारिश वाली जगहों पर ज्यादा बारिश होती है. अगर अल नीनो दक्षिण अमेरिका की तरफ सक्रिय हो तो भारत में उस साल कम बारिश होती है. अल नीनो का मौजूदा दौर शुरू होने से पहले मई में समुद्र की सतह का औसत तापमान अब तक दर्ज किसी भी रिकॉर्ड से करीब 0.1 सेल्सियस ज्यादा था. पिछली बार अल नीनो का गर्म प्रभाव 2018 से 2019 के बीच आया था. इसके बाद एक ठंडा दौर चला, जिसे ला नीना कहते हैं.
स्पेनी भाषा में ला नीना का मतलब होता है लिटिल गर्ल, यानी छोटी लड़की. यह अल नीनो का ठंडा प्रतिरूप है. इस दौरान भूमध्यरेखा के पास पूर्वी और मध्य प्रशांत सागर में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से कम होता है. इसकी उत्पत्ति के अलग-अलग कारण माने जाते हैं, लेकिन सबसे प्रचलित कारण तब पैदा होता है, जब पूर्व से बहने वाली हवाएं बहुत तेज गति से बहती हैं. इससे समुद्री सतह का तापमान बहुत कम हो जाता है और दुनिया भर का तापमान औसत से अधिक ठंडा हो जाता है. ला नीना का सबसे मजबूत असर 2015-16 में दिखा था, जब ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ के करीब एक-तिहाई प्रवाल मर गए थे.
अल नीनो के असर की वजह से अक्सर दक्षिण अमेरिका, मध्य एशिया और हॉर्न ऑफ अफ्रीका में बारिश बढ़ जाती है. इससे उन इलाकों में सूखे की स्थिति खत्म होने की उम्मीद जगती है. लेकिन इस जलवायु प्रणाली के चलते ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में सूखे का जोखिम बढ़ सकता है. इसी हफ्ते ऑस्ट्रेलिया ने चेतावनी दी थी कि अल नीनो के कारण देश में गरम और शुष्क दिनों में इजाफा होगा. जापान ने भी वसंत में रिकॉर्ड गरमी के लिए अल नीनो को जिम्मेदार बताया है.
एनओएए के मुताबिक, अमेरिका में गरमियों के दौरान अल नीनो का प्रभाव अपेक्षाकृत कमजोर होगा, लेकिन यह पतझड़ से मजबूत होने लगेगा और वसंत में भी यही स्थिति बनी रहेगी. जहां अटलांटिक में तूफान की सक्रियता पर अल नीनो का असर निषेधात्मक होता है, वहीं मध्य और पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में यह अमूमन तेज आंधी-तूफान की संभावना को बढ़ा देता है.

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