धर्म क्या है?
धर्म क्या है?
इसका जवाब हर कोई अपनी समझ के अनुसार देगा. मैं धर्म को कर्त्तव्य के रूप में मानता हूं. मेरा मानना है कि व्यक्ति के जीवन में एक नहीं, अनेक कर्त्तव्य हैं; इसलिए उसके लिए धर्म का पालन भी एक नहीं, अनेक रूपों में करना होता है. जैसे - मानवीय धर्म, प्रकृति की रक्षा का धर्म, विश्व के प्रति धर्म, राष्ट्र के प्रति धर्म, पारिवारिक धर्म वग़ैरह.
धर्म के उन अर्थों में जिन्हें तथाकथित धार्मिक अगुआ अभिव्यक्त करते रहते हैं, मेरी कोई आस्था नहीं है. उन अर्थों में मैं न तो किसी धर्म का अनुयायी हूं, न ही उसका पालन करता हूं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं किसी धार्मिक व्यक्ति का विरोधी हूं.
मेरा मानना है कि हर आदमी की आस्था व्यक्तिगत होनी चाहिए. आपकी आस्था आपकी है तो मेरी आस्था मेरी है. हर किसी को उसे चुनने का अधिकार होना चाहिए और किसी को उसका सार्वजनिक प्रदर्शन करने से परहेज़ करना चाहिए. इसके बावजूद मैं किसी परिवार या व्यक्ति के धार्मिक कार्यक्रम में शिरकत करता हूं तो महज़ इसलिए कि मैं सामाजिक तौर पर उनसे जुड़ा हुआ हूं. जैसे मैं किसी की आस्था का सम्मान करता हूं, वैसे ही चाहता हूं कि दूसरे भी मेरी आस्था का सम्मान करें.
धर्म के उन अर्थों में जिन्हें तथाकथित धार्मिक अगुआ अभिव्यक्त करते रहते हैं, मेरी कोई आस्था नहीं है. उन अर्थों में मैं न तो किसी धर्म का अनुयायी हूं, न ही उसका पालन करता हूं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं किसी धार्मिक व्यक्ति का विरोधी हूं.
मेरा मानना है कि हर आदमी की आस्था व्यक्तिगत होनी चाहिए. आपकी आस्था आपकी है तो मेरी आस्था मेरी है. हर किसी को उसे चुनने का अधिकार होना चाहिए और किसी को उसका सार्वजनिक प्रदर्शन करने से परहेज़ करना चाहिए. इसके बावजूद मैं किसी परिवार या व्यक्ति के धार्मिक कार्यक्रम में शिरकत करता हूं तो महज़ इसलिए कि मैं सामाजिक तौर पर उनसे जुड़ा हुआ हूं. जैसे मैं किसी की आस्था का सम्मान करता हूं, वैसे ही चाहता हूं कि दूसरे भी मेरी आस्था का सम्मान करें.


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