भारत विभाजन का दोषी कौन?........................1
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मलयाली मुखपत्र 'केसरी' में बी. गोपालकृष्णन ने भले ही देश विभाजन का बड़ा जिम्मेदार जवाहरलाल नेहरू को बताया है, मगर संघ और उसके आनुषंगिक संगठनों के साथ ही कांग्रेस के भीतर सरदार पटेल समर्थक तत्व इसके लिए मुख्य रूप से उस मुस्लिम अलगाववाद को दोषी ठहराते रहे हैं, जिसे ब्रिटिश उपनिवेशवादियों का समर्थन हासिल था.
वैसे, कांग्रेस के भीतर और बाहर की कथित सेकुलर लॉबी, मसलन नेहरू समर्थक कांग्रेसियों और कम्युनिस्टों की लाइन भी इससे कोई बहुत अलग नहीं है. इस लॉबी का मानना है कि विभाजन के लिए मुख्य रूप से कसूरवार ब्रिटिश उपनिवेशवाद था और मुस्लिम लीग ने उसके सहायक की भूमिका निभाई.
इस सिलसिले में विभाजन के पूर्व कांग्रेस के बड़े नेता रहे मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अपनी किताब "इंडिया विन्स फ्रीडम" (पृ. 183) में जो लिखा है, वह गौरतलब है. उनका कहना था: "यह दर्ज करना जरूरी है कि भारत में लॉर्ड मॉउंटबेटन के विचार के आगे सबसे पहले घुटने टेकने वाले शख्स सरदार पटेल थे. उनका पक्का मत था कि वे मुस्लिम लीग के साथ काम नहीं कर सकते. उन्होंने खुलेआम कहा था कि वे लीग को भारत का एक हिस्सा देने को तभी तैयार होंगे, जब उससे छुटकारा मिल सकता हो...मुझे पटेल के यह कहने पर कि हम पसंद करें या न करें, भारत में दो राष्ट्र हैं, ताज्जुब हुआ और दुख भी. वे इस बात के कायल हो चुके थे कि मुसलमान और हिंदू एक राष्ट्र में नहीं पिरोये जा सकते."
अकेले पटेल ही इस मत के झंडाबरदार नहीं थे, नेहरू और गांधी भी कुछ समय बाद उनसे सहमत हो गए. मौलाना के अनुसार, "एक समय विभाजन के सख्त खिलाफ रहे नेहरू बाद में सरदार पटेल का साथ देते लगे. इसकी एक वजह उन पर लेडी और लॉर्ड मॉउंटबेटन का असर होना था." मौलाना तो उस समय और बुरी तरह हिल गए जब उन्होंने गांधी को भीपटेल के दबाव में आते देखा. उन्होंने आगे लिखा है, "विभाजन के पक्ष में होने के बावजूद पटेल इस बात के कायल थे कि पाकिस्तान नाम का नया देश व्यवहार्य नहीं है और वह ज्यादा देर टिक नहीं पाएगा. उन्होंने सोचा कि पाकिस्तान को स्वीकार कर लिए जाने से मुस्लिम लीग को कड़वा सबक मिलेगा; पाकिस्तान तो थोड़े अरसे बाद ही दम तोड़ देगा और भारत से अलग होने वाले प्रांतों को बेहिसाब मुश्किलों और दुखों का सामना करना पड़ेगा."
पटेल की सोची-समझी लाइन को लेकर ब्रिटिश लिबरल पार्टी के नेता, पत्रकार, जनसंपर्क विशेषज्ञ और 1947-48 में लॉर्ड मॉउंटबेटन के प्रेस अटाछे रहे ऐलन कैंपबेल-जॉनसन भी सहमत दिखे. 1952 में लंदन में छपी अपनी किताब "मिशन विद मॉउंटबेटन" (पृ. 46) में उन्होंने लिखा है, "समूची समस्या को लेकर पटेल का रुख स्पष्ट और दृढ़निश्चयी था और वह यह था कि भारत को मुस्लिम लीग से छुटकारा पा लेना चाहिए."
गांधी की जीवनी लिख चुके जाने-माने अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर ने भी नेहरू के पटेल से सहमत हो जाने पर लिखा है. उनका कहना था (हिंदुस्तान टाइम्स, 29.03.1988 में उद्धृत), "नेहरू पटेल की इस दलील के आगे नतमस्तक हो गए कि दोनों देश चार, पांच, या दस साल में फिर एक हो जाएंगे."


0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home