अप्रवासियों का समर्थन पाने की मची होड़
विदेश में रहने वाले भारतीयों को बांटने के लिए कॉर्पोरेट कंपनियों के पैसों पर पलने वाली राजनैतिक पार्टियां जोर-शोर से लगी हुई हैं. इस काम में सबसे आगे चल रही भाजपा और कांग्रेस में से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली भाजपा बीस ही साबित हो रही है.
आज अमेरिका के दौरे पर पहुंचे मोदी तीन दिन बाद 23 जून को वाशिंगटन डीसी के इंटरनेशनल ट्रेड सेंटर में अप्रवासी भारतीयों से मुखातिब होंगे. दो घंटे के इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के साथ अपेक्षाकृत सीमित लोग ही शामिल होंगे. मात्र 1,000 गणमान्य अतिथियों को इसमें आमंत्रित किया गया है. अभी पिछले माह के अंतिम सप्ताह में ही मोदी ऑस्ट्रेलिया में भारतीय प्रवासियों के साथ जश्न मनाने के लिए सिडनी में एक सामुदायिक कार्यक्रम में शामिल हुए थे.
उधर, अप्रवासी भारतीयों के दिल जीतने के लिए कांग्रेस भी भाजपा के साथ प्रतियोगिता कर रही है. देश में अपनी कथित भारत जोड़ो यात्रा की सफलता से उत्साहित राहुल गांधी ने इसी माह अमेरिका के अपने दौरे में अप्रवासियों की कई सभाओं को संबोधित किया था, जिसमें 4 तारीख को न्यूयॉर्क की एक बैठक भी शामिल है. इसी साल मार्च में राहुल लंदन में वहां रह रहे भारतीयों से मुखातिब हुए थे.
दोनों बड़ी पार्टियों में अप्रवासियों का समर्थन पाने के लिए मची होड़ अकारण नहीं है. दरअसल, दुनिया भर के 205 देशों में 3.2 करोड़ से अधिक भारतीय रहते हैं, जिनमें 1,34,59,195 अनिवासी और 1,86,83,645 भारतीय मूल के व्यक्ति हैं. ये आंकड़े आज की तारीख में विदेश मंत्रालय की वेबसाइट (https://mea.gov.in/population-of-overseas-indians.htm) पर उपलब्ध हैं. भारतीयों की भारी तादाद अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और खाड़ी देशों में रहती है. कुल मिलाकर, ऐसे लोग स्वदेश में सालाना करीब 80 अरब डॉलर (यानी आज के 6,500 अरब रु.) की रकम भेजते हैं.
जाहिर है, अप्रवासियों का समर्थन बटोरने के पीछे मकसद जिन देशों में वे रहते हैं वहां उनके रुतबे का इस्तेमाल कूटनीतिक बढ़त पाने के साथ-साथ उनसे भारी आर्थिक मदद लेना भी है. इस तरह, समर्थन और प्रभाव बढ़ाने की दृष्टि से राजनैतिक नेताओं के लिए अप्रवासी भारतीय एक महत्वपूर्ण आधार के तौर पर उभरे हैं.

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