Wednesday, October 25, 2017

बैंकों को उबारना, किसानों को नहीं


कॉर्पोरेट पूंजी क्षेत्र को संकट में आता देखकर भारत सरकार तुरंत हरकत में आती है जबकि मनुष्य की जिंदगी के लिए बुनियादी काम खेती में संकट भले ही किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दे, उसके कान पर जूं तक नहीं रेंगती. हां, जिस राज्य में वोट पक्के करने हों तो वहां किसानों की कर्ज माफी की घोषणा तो करती है लेकिन उसके लागू होने में हजार तरह की अड़चनें डाल देती है.

मंगलवार को केंद्र सरकार नोटबंदी के बाद एक बार फिर सरकारी बैंकों को जिलाने के लिए अपनी भारी भरकम योजना लेकर आ गई. इसके तहत उसने बैकों को 2,11,000 करोड़ रु. का पैकेज दिया है जिसमें 76,000 करोड़ रु. बजटीय समर्थन से दिए जाएंगे. बाकी पैसे के लिए उसने बाजार से रकम जुटाने की योजना दी है. ताकि बैंक ज्यादातर कॉर्पोरेट पूंजीपतियों को दिए कर्जे की वजह से जमा हुए अपने नॉन परफार्मिंग एसेट्स (एनपीए) की समस्या से निजात पा सकें. ताजा आंकड़ों के अनुसार सूचीबद्ध 39 बैंकों का एनपीए 8,35,000 करोड़ रु. हो चुका है. यह बैंकों की ओर से दिए गए वह कर्ज हैं, जिन्हें कर्जदार खासकर कॉर्पोरेट पूंजीपति चुकाना बंद कर देते हैं. पिछले साल भी जब बैंकों का सकल एनपीए 6,50,000 करोड़ रु. था और व्यावहारिक तौर पर वह बट्टे खाते में चला गया था तो मोदी सरकार उन्हें उबारने के लिए नोटबंदी की योजना लाई थी.

दूसरी तरफ साल भर पहले सरकार की तरफ से राज्यसभा में रखे गए आंकड़ों के अनुसार कृषि पर दिए गए कर्ज का बकाया 12,60,264 करोड़ रु. था, जिस पर महज तीन राज्य सरकारों ने कर्ज माफी की घोषणा की लेकिन उसमें भी कई फच्चर फंसा दिए. उत्तर प्रदेश सरकार ने सिद्धांत रूप में 36,400 करोड़ रु. के कर्ज माफ किए तो पंजाब और महाराष्ट्र के मामले में यह आंकड़ा क्रमश: 10,000 करोड़ रु. और 31,600 करोड़ रु. था. जाहिर है, सरकार किसी भी पार्टी को हो वह हमेशा कॉर्पोरेट पूंजीपतियों के पक्ष में खड़ी होती है. केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, इनमें कोई भी खेती के मामले में चल रहे संकट को सुलझाने के लिए आगे नहीं आई हैं. 

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