2030 तक आर्कटिक में गरमियों में नहीं दिखेगी बर्फ
चित्र साभार: https://www.esri.com/arcgis-blog/products/arcgis-living-atlas/mapping/sea-ice-aware/
जरा कल्पना कीजिए: पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में स्थित जो उत्तर ध्रुवीय महासागर या आर्कटिक महासागर है, जिसका विस्तार ज्यादातर उत्तर ध्रुवीय क्षेत्र में है, गरमियों के दौरान उसमें बर्फ ही न रहे तो क्या होगा?
जाहिर है, गरमियों में वहां बर्फ न रहने से एक फायदा तो यह होगा ही कि एशिया से जाने वाले जहाजों को साल के गरम मौसम में यूरोपी बंदरगाहों तक की यात्रा में लगभग 5,000 किलोमीटर की बचत हो जाएगी. लेकिन इस मामूली फायदे के मुकाबले नुक्सान बहुत अधिक हैं.
दरअसल, उत्तर ध्रुवीय महासागर की बर्फ हमारी जलवायु प्रणाली का बहुत महत्वपूर्ण अंग है -- इसलिए कि महासागर जितनी धूप सोख लेता है, बर्फ गरमी की उस मात्रा में जबरदस्त कमी लाती है. यह बर्फ न हो तो समुद्र का पानी खुद-ब-खुद बेहद गरम हो जाएगा. इससे आर्कटिक और अटलांटिक महासागर के बीच स्थित ग्रीनलैंड की बर्फ का आवरण तेजी से पिघलेगा, जिससे समुद्र की सतह बहुत ऊपर उठ जाएगी.
यही नहीं, गरमियों में वहां बर्फ न रहने से धरती के वातावरण में हवा का बहना प्रभावित होगा, तूफानों के रास्ते बदल जाएंगे और महासागरों की जैविक गतिविधियों में बुनियादी तब्दीलियां आ जाएंगी.
लेकिन एक चिंताजनक बात है और वह यह कि साल 2030 तक आर्कटिक महासागर में गरमियों के दौरान बर्फ न दिखने की कल्पना साकार होने जा रही है. भले ही दुनिया आज से ही कार्बोन उत्सर्जन कम करने को लेकर चाहे कितना भी काम क्यों न कर ले. और उस समय बर्फ न रहने के नुक्सान हम ऊपर पढ़ ही चुके हैं.
दिमाग को झिंझोड़ देने वाला यह निष्कर्ष एक नए अध्ययन में सामने आया है, जिसका प्रकाशन "नेचर कम्युनिकेशंस" नामक पत्रिका ने किया है (https://www.nature.com/articles/s41467-023-38511-8). पत्रिका में प्राकृतिक विज्ञान की सभी शाखाओं के शोध कार्य प्रकाशित होते हैं.

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