Thursday, August 28, 2014

समान नागरिक संहिता सचमुच समान नागरिक संहिता होनी चाहिए 

भाजपा का मानना है कि देश में समान नागरिक संहिता बनाई जानी चाहिए जो हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी नागरिकों पर लागू हो. समान नागरिक संहिता अच्छी बात है, लेकिन मुझे लगता है कि कुछ कानून ऐसे हैँ जो नागरिकों को तो छोड़िए, सारे हिंदुओं पर भी लागू नहीं होते. यानी हिंदुओं की आधी आबादी उनसे एकदम वंचित है. 

मसलन, हिंदू उत्तराधिकार क़ानून, 1956 के अनुसार, वसीयत किए बिना मृत्यु को प्राप्त होने वाली किसी हिंदू महिला की जायदाद के निबटारे का तरीका किसी हिंदू पुरुष के मुकाबले अलग है. ऐसी महिला का पति अथवा कोई बच्चा वारिस न होने क़ी स्थिति मेँ उसके पति के वारिस उसकी संपत्ति को विरासत में हासिल करते हैं. मृतक महिला के साथ ससुराल में भले ही दुर्व्यवहार किया जाता रहा हो, लेकिन उसकी संपत्ति उसकी अपनी मां या पिता को मिलने के बजाए पति की मां या पिता को मिलती है.

दूसरे, अपराध कानून (संशोधन) संहिता, 2013 के अनुसार, 18 साल से कम आयु की किसी कन्या के साथ यौनकर्म को बलात्कार माना जाता है, लेकिन किसी हिंदू पुरुष का अपनी नाबालिग़ पत्नी के साथ (बशर्ते उसकी उम्र 15 साल से कम न हो) यौनकर्म को अपराध नहीं माना जाता. अजीब बात यह है कि बाल विवाह निषेध कानून, 2006 बाल विवाह की तो इजाजत नहीं देता, लेकिन ऐसा विवाह संपन्न हो जाने पर उसे गैर कानूनी भी करार नहीं देता.

तीसरे, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अनुसार, बहुपत्नी प्रथा अवैध है, लेकिन पुर्तगाली नागरिक संहिता, 1867 पर आधारित गोवा नागरिक संहिता किसी "ग़ैर ईसाई (gentile) हिंदू" पुरुष की पहली पत्नी अगर 25 साल की उम्र से पहले कोई बच्चा नहीं जनती अथवा 30 साल की उम्र तक कोई लड़का पैदा नहीं करती तो उस पुरुष को दूसरे विवाह की अनुमति देती है.

ऐसे में क्या यह नहीं सोचा जाना चाहिए कि अभी तो हिंदुओं के लिए ही कोई समान संहिता बनाने की जरूरत है.

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