Thursday, June 15, 2023

दुनिया में करीब 10.84 करोड़ जबरन विस्थापित

चित्र साभार: https://www.unhcr.org/


दुनिया भर में जबरन विस्थापित लोगों की संख्या करीब 10.84 करोड़ है. यह अभी तक की सर्वाधिक संख्या है. पिछले दिसंबर अंत तक के ये आंकड़े अभी कल ही संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी यूएनएचसीआर ने अपनी एक रिपोर्ट में जारी किए हैं. इसमें यह भी कहा गया है कि विस्थापित लोगों को संभालने में सबसे अधिक जिम्मेदारी गरीब और मध्यम आय वाले देश निभाते आ रहे हैं और विश्व के जीडीपी में 1.3 प्रतिशत से भी कम योगदान देने के बावजूद 46 अल्प विकसित देशों ने 20 प्रतिशत से अधिक शरणार्थियों को पनाह दी. 

ये विस्थापित लोग उत्पीड़न, लड़ाई, हिंसा, मानवाधिकारों के उल्लंघन या सार्वजनिक व्यवस्था में गंभीर रूप से विघ्न पड़ने की घटनाओं के चलते अपने घर-बार छोड़ने को मजबूर हुए थे. 2021 के अंत तक के ऐसे आंकड़ों से तुलना करें तो विस्थापन के नए आंकड़ों में 1.9 करोड़ की वृद्धि हुई है. संख्या के लिहाज से देखें तो इक्वाडोर, नीदरलैंड या सोमालिया में से प्रत्येक की आबादी भी इससे कम होगी. इससे यह भी दिखा कि दुनिया में हर 74 लोगों पर 1 व्यक्ति विस्थापित है. 

धरती पर इस समय चल रही और कुछ नई लड़ाइयों ने जबरन विस्थापितों की संख्या में उछाल ला दिया है. 

फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़े और तेजी से उभरे विस्थापन संकट को जन्म दिया. इस तरह, पिछले साल के अंत तक कुल 1.16 करोड़ यूक्रेनी नागरिक विस्थापित हो चुके थे. इनमें 59 लाख लोग तो देश में ही विस्थापित हुए और 57 लाख को पड़ोसी या अन्य देशों में भागकर शरण लेनी पड़ी. दुनिया के कुछ दूसरे हिस्सों में लड़ाई और असुरक्षा के चलते ऐसे हालत पैदा हुए. इससे कांगो गणराज्य, इथोपिया और म्यांमार जैसे हरेक देश में 10 लाख लोगों को विस्थापन झेलना पड़ा. 

दुनिया में शरणार्थियों की संख्या 2021 की 2.71 करोड़ के मुकाबले बढ़कर पिछले साल के अंत तक 3.53 करोड़ जा पहुंची. किसी एक साल से संबंधित यह सबसे बड़ा आंकड़ा है. इसका मुख्य कारण यूक्रेन का युद्ध है. कुल मिलाकर, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की गुहार लगाने वाले 52 प्रतिशत शरणार्थी मात्र तीन देशों के ही थे. इनमें यूक्रेन (57 लाख) के अलावा अन्य देश सीरिया (65 लाख) और अफग़ानिस्तान (57 लाख) हैं. 

कुल मिलाकर देखें तो ये लड़ाइयां कॉर्पोरेट पूंजीपतियों और उनके चंदों पर पलने वाली राजनैतिक पार्टियों की विभिन्न सरकारों के कुकर्मों का नतीजा हैं. आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि रूस, चीन और अमेरिका जैसी महाशक्तियां बड़े कॉर्पोरेट के एक या दूसरे गुट का प्रतिनिधित्व करते हुए ऐसी लड़ाइयां लोगों पर थोपती हैं. इनके नतीजे में जो लोग विस्थापित हो जाते हैं, ये महाशक्तियां उनका जिम्मा भी नहीं लेतीं और उन्हें उनके ही हाल पर छोड़ देती हैं. यही नहीं, यूक्रेन, सीरिया और अफग़ानिस्तान के जो लोग शरणार्थी बने हैं, वे भी इन महाशक्तियों के ही थोपे युद्धों या गृहयुद्धों की ही देन हैं. 

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